बुंदेल खण्ड क्षेत्र के प्रमुख लोक नृत्यों का परिचय दीजिए?
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झांसी। बुंदेलखंड की लोक नृत्य कला शैली खासी समृद्ध है। यहां के राई व सेरा नृत्य ने दुनिया के कई देशों में अपनी पहचान बनाई है। इसके अलावा भी क्षेत्र में कई लोक नृत्य प्रचलित हैं, जो विभिन्न समाजों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। यह यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह व त्योहारों के अवसर पर देखने को मिल जाते हैं।
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बुंदेली नृत्य कला शैली को सबसे ज्यादा संरक्षण मराठा काल में मिला। नृत्य-संगीत के शौकीन राजा गंगाधर राव ने कला व कलाकारों को विशेष प्रोत्साहन दिया। इसके लिए उन्होंने नृत्य शालाओं की स्थापना कराई, जिनके अस्तित्व अब भी किले व राजा रघुनाथ राव महल में मौजूद हैं। इतना ही नहीं, राजा गंगाधर राव ने नृत्यों के प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी कराई थी।
इसके अलावा बुंदेलखंड की प्राचीन कला संस्कृति को भावी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए भी गंगाधर राव ने महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। इसके लिए उन्होंने नृत्य कला से जुड़े कलाकारों के इतिहास व कला की बारीकियों का संग्रह तैयार कराया था। लेकिन, 1857 के गदर में फिरंगियों ने इसे फूंक दिया गया था। अब इसका अस्तित्व भी बाकी नहीं है।
बुंदेली संस्कृति के जानकार हरगोविंद कुशवाहा ने बताया कि प्राचीन काल से ही बुंदेलखंड की नृत्य संस्कृति खासी समृद्ध रही है। इसके संरक्षण में राजा गंगाधर राव का अहम योगदान रहा है।
मूर्तियों में भी है नृत्य कला का विकास
बुंदेलखंड की समृद्ध नृत्य कला शैली यहां की प्राचीन मूर्तियों में भी नजर आती है। राजकीय संग्रहालय में 10वीं शताब्दी की सीरोन खुर्द ललितपुर से प्राप्त चौदह भुजी गणेश की एक पैर पर नृत्य करती प्रतिमा सन 1986 में पेरिस में आयोजित भारत महोत्सव में शामिल हुई थी। प्रतिमा के दोनों ओर संगीतज्ञों की लघु प्रतिमाएं बांसुरी, तबला आदि वाद्य बजा रहे हैं। इसके अलावा 10वीं शताब्दी की ही 16 भुजी गणेश �