बुंदेलखंड के प्रमुख लोकचित्र कोंन कोंन से है
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भौरा जात पराए बागे।
तनक लाज ना आई।।
आल्हा में लोक कवि जगनिक कहते हैं
बारह बरस लौ कुकुर जीवे।
तेरह लो जिए सियार।।
बीस बरस लौ छत्रिय जी बे।
आगे जीने को धिक्कार।।
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