बंद नदी अब भी चलते है नियति नटी के कार्य कलाप इन पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए
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बंद नहीं, अब भी चलते हैं, नियति-नटी के कार्य-कलाप, यह पंक्तियाँ चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता से ली गई है | चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई है |
गुप्त जी कहते हैं कि सुन्दर चन्द्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई है | वह चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते है कि ”चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में स्वच्छ चाँदी बिछी हुई है |
बंद नहीं, अब भी चलते है, नियति-नटी के कार्य-कलाप,
चारों तरफ़ शांत वातावरण है और सभी लोग सो रहे हैं। फिर भी नियति रूपी नटी अपने सारे कार्यों को बहुत शान्त भाव से पुरा करने में मग्न है। वह अकेले-अकेले और निरंतर और चुपचाप अपने कर्तव्यों का पालन किए जा रहे है | वह चुपचाप हम सब के लिए कुछ कर रहा है |
बंद नहीं, अब भी चलते हैं, नियति-नटी के कार्य-कलाप, यह पंक्तियाँ चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता से ली गई है | चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई है |
गुप्त जी कहते हैं कि सुन्दर चन्द्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई है | वह चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते है कि ”चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में स्वच्छ चाँदी बिछी हुई है |
बंद नहीं, अब भी चलते है, नियति-नटी के कार्य-कलाप,
चारों तरफ़ शांत वातावरण है और सभी लोग सो रहे हैं। फिर भी नियति रूपी नटी अपने सारे कार्यों को बहुत शान्त भाव से पुरा करने में मग्न है। वह अकेले-अकेले और निरंतर और चुपचाप अपने कर्तव्यों का पालन किए जा रहे है | वह चुपचाप हम सब के लिए कुछ कर रहा है |