बूंदी और अलवर राज्य में किसान आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी। ... प्रजामण्डल, स्थापना वर्ष, संस्थापक, टिप्पणी.
बूंदी और अलवर राज्य में किसान आंदोलन पर टिप्पणी —
बूंदी में किसान आंदोलन : जब राजस्थान में बेंगू व बिजोलिया में किसान आंदोलन चला, तो इससे प्रेरित होकर बूंदी के किसानों ने भी वहां की सामंतवादी व्यवस्था के शोषण के विरुद्ध बगावत का बिगुल फूंक दिया और उन्होंने ने भी एक आंदोलन का आरंभ कर दिया।
पंडित नयनू राम शर्मा ने के नेतृत्व में 15 जून 1922 को बूंदी के सारे किसान इस आंदोलन में पूरी तरह शामिल हो गए और उन्होंने सरकार तत्कालीन बूंदी के शासक के दरबार की तरफ रुख किया। पंडित नयनू राम शर्मा को नवंबर 1922 में गिरफ्तार कर लिया गया। मई 1930 में पुलिस ने अनेकता आंदोलनकारी किसानों पर गोलियां चलाई जिससे अनेक किसान मारे गए और आंदोलन कमजोर पड़ गया।
अलवर में किसान आंदोलन : मई 1925 में अलवर की तहसील बानसूर और थानागाजी में तत्कालीन सरकार ने भू-राजस्व की दरें ऊंची कर दीं। जिसके कारण वहां के सारे किसान भड़क गए।
उन्होंने इसके विरुद्ध आंदोलन शुरु कर दिया। 14 मई 1925 को बानसूर तहसील के एक गांव नीमूचाणा गाँव में किसानों की एक सभा हो रही थी, तभी वहां के सैनिक आए और उन्होंने किसानों पर गोलियों की बौछार कर दी। इस घटना में लगभग 95 किसान मारे गए और ढाई सौ अधिक घायल हुए। अनेक किसानों के घरों को भी जला दिया था। महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया गया। इस हत्याकांड की सर्वत्र निंदा हुई थी।