History, asked by BoyWhoCode, 1 year ago

बौद्ध की शिक्षाओ का वर्णन कीजिए।
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Answered by rohit381
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गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं।

तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदी शिक्षाओं को प्रदान किए हैं।

चार आर्य सत्यसंपादित करें

तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था। बुद्ध ने चार अार्य सत्य बताये हैं।

१. दुःख 

इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।

२. दुःख कारण 

तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।

३. दुःख निरोध 

तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।

४. दुःख निरोध का मार्ग 

तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।

अष्टांगिक मार्गसंपादित करें

साँचा:Main:अष्टांगिक मार्ग

बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :

१. सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना
२. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
३. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूट न बोलना
४. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्मों को न करना
५. सम्यक जीविका : कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक व्यापार न करना
६. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना
७. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
८. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना

कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को पथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले के स्तर को पाना आवश्यक है। और लोगों को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते है। मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है : प्रज्ञा, शील और समाधि।

पंचशीलसंपादित करें

भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को पांच शीलो का पालन करने की शिक्षा दि हैं।

१. अहिंसा

पालि में – पाणातिपाता वेरमनी सीक्खापदम् सम्मादीयामी !

अर्थ – मैं प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

२. अस्तेय 

पाली में – आदिन्नादाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी

अर्थ – मैं चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

३. अपरिग्रह 

पाली में – कामेसूमीच्छाचारा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी

अर्थ – मैं व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

४. सत्य 

पाली नें – मुसावादा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी

अर्थ – मैं झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

४. सभी नशा से विरत 

पाली में – सुरामेरय मज्जपमादठटाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी।

अर्थ – मैं पक्की शराब (सुरा) कच्ची शराब (मेरय), नशीली चीजों (मज्जपमादठटाना) के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

बोधिसंपादित करें

गौतम बुद्ध से पाई गई ज्ञानता को बोधि कहलाते है। माना जाता है कि बोधि पाने के बाद ही संसार से छुटकारा पाया जा सकता है। सारी पारमिताओं (पूर्णताओं) की निष्पत्ति, चार आर्य सत्यों की पूरी समझ और कर्म के निरोध से ही बोधि पाई जा सकती है। इस समय, लोभ, दोष, मोह, अविद्या, तृष्णा और आत्मां में विश्वास सब गायब हो जाते है। बोधि के तीन स्तर होते है ः श्रावकबोधि, प्रत्येकबोधि और सम्यकसंबोधि। सम्यकसंबोधि बौध धर्म की सबसे उन्नत आदर्श मानी जाती है।


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rohit381: mark it brainliest
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