बौद्ध और जैन संप्रदाय के आंदोलनों को धार्मिक सुधार आंदोलन क्यों कहा जाता है
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बौद्ध धर्म और जैन धर्म के आंदोलनों को धार्मिक सुधार आंदोलन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह आंदोलन वैदिक धर्म में व्याप्त पाखंड और आडंबरों के विरुद्ध उपजे आंदोलन थे।
भारत में प्राचीन धर्म वैदिक धर्म था, जिस के अनुयाई आर्य लोग ईश्वर के विभिन्न रूपों की कल्पना करके उन्हें देवताओं के रूप में प्रतिस्थापित करके उनकी उपासना करते थे। उस समय आर्यों में अनेक कर्मकांड प्रचलित थे, ऐसे यज्ञ, हवन और तंत्र, मंत्र तथा अन्य विधि-विधान आदि। आरंभिक अवस्था में तो इन सभी धार्मिक कर्मकांड में बेहद सरलता और सहजता थी, कालांतर में इन सभी कर्मकांडों का स्वरूप बिगड़ता गया और जटिल होता गया। उस समय के लोग आडंबरों और कर्मकांडों को ही ईश्वर प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति का साधन समझने लगे। वह ईश्वर के निराकार रूप से अलग हटकर साकार रूप को अधिक महत्व देने लगे। कर्मकांडों का स्वरूप बिगड़ता गया यज्ञ आदि में पशुओं की बलि दी जाने लगी।
ब्राह्मणवाद का जोर होता गया उनमें पाखंड की अधिकता हो गयी। आर्यों ने जो वर्ण व्यवस्था अपने सामाजिक स्वरूप को सरल बनाने के लिए की थी, उसने विकृतियां आती गयी। जातिगत भेदभाव अधिक मुखर हो उठा और कुछ जातियां स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगी तथा कुछ जातियों को निम्न स्तर तक गिरा दिया गया। वैदिक लोगों में अनेक तरह के कुरीतियां और कुप्रथाएं में जन्म लेने लगीं।
इन सब कुरीतियो, कुप्रथाओं तथा धार्मिक आडंबरों एवं कर्मकांड के विरुद्ध धार्मिक सुधार हेतु ही पहले वर्धमान महावीर के रूप में जैन धर्म में धार्मिक सुधार आंदोलन हुआ, उसके बाद गौतम बुद्ध के रूप में महात्मा बुद्ध ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। इस तरह बौद्ध धर्म और जैन संप्रदाय के आंदोलन धार्मिक सुधार के आंदोलन थे, जो वैदिक धर्म में व्याप्त कुरीतियों और कर्मकांडों और आडंबरों के निराकरण हेतु उपजे थे।
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Answer:
Bharat ke manchitra par 3 subhi stal jo vishnu siv aur devi mandir