बुद्धि धन है short story in hindi
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राजा सिर से पैर तक पैसे के मद में डूबा था; परंतु उसकी रानी बड़ी बद्विमती थी। वह पैसे को तुच्छ और बुद्वि को श्रेष्ठ समझती थी। रानी की चतुराई के कारण राज का सब काम-काज ठीक रीति से चलता था।किसी देश में एक राजा राज करता था। उसके लिए पैसा ही सबकुछ था। वह सोचता था कि पैसे के बल पर दुनिया के सब काम-काज चलते हैं। 'तांबे की मेख तमाशा देख, कहावत झूठ नहीं है। मेरे पास अटूट धन है, इसीलिए मैं इतने बड़े देश पर राज करता हूं। लोग मेरे सामने हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। चाहूं तो अभी रुपयों की सड़क तैयार करा दूं। आसमान में सिर उठाये खड़े इन पहाड़ों को खुदवाकर फिकवा दूं। पैसे के बूते पर मेरे पास एक जबरदस्त फौज है। उसके द्वारा किसी भी देश को क्षण-भर में कुचल सकता हूं। वह सबसे यही कहता था कि इस संसार में धर्म-कर्म, स्त्री-पुत्र, मित्र-सखा सब पैसा ही है।
पैसे की इस प्रकार निंदा सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया। बोला, 'रानी तुम्हें अपनी बुद्वि का बड़ा घमंड है। मैं देखना चाहता हूं कि तुम बिना पैसे के बुद्वि के सहारे कैसे काम चलाती हो? ऐसा कहकर उसने रानी को नगर के बाहर एक मकान में रख दिया। सेवा के लिए दो-चार नौकर भेज दिये। खर्च के लिए न तो एक पैसा दिया और न किसी तरह का कोई सामान रानी के शरीर पर जो जेवर थे, वे भी उतरवा लिये। रानी मन-ही-मन कहने लगी कि मैं एक दिन राजा को दिखा दूंगी कि संसार में बुद्वि भी कोई चीज है, पैसा ही सब कुछ नहीं है।
नये मकान में पहुंचकर रानी ने नौकर द्वारा कुम्हार के अवे से दो ईंटें मंगवाईं और उन्हें सफेद कपड़े में लपेटकर ऊपर से अपने नाम की मुहर लगा दी। फिर नौकर को बुलाकर कहा, तुम मेरी इस धरोहर को धन्नू सेठ के घर ले जाओ। कहना, रानी ने यह धरोहर भेजी है, दस हजार रुपये मंगाये हैं। कुछ दिनों में तुम्हारा रुपया मय सूद के लौटा दिया जायगा और धरोहर वापस कर ली जायगी।
नौकर सेठ के यहां पहुंचा। धरोहर पर रानी के नाम की मुहर देखकर सेठ समझा कि इसमें कोई कीमती जेवर होंगे। उवसे दस हजार रुपया चुपचाप दे दिया। रुपया लेकर नौकर रानी के पास आया। रानी ने इन रुपयों से व्यापार शुरू किया। नौकर-चाकर लगा दिये। रानी देख-रेख करने लगी। थोड़े ही दिनों में उसने इतना पैसा पैदा कर लिया कि सेठ का रुपया चुक गया और काफी पैसा बच रहा। इस रुपये से उसने गरीबों के लिए मुफ्त दवाखाना, पाठशाला तथा अनाथालय खुलवा दिये। चारों ओर रानी की जय-जयकार होने लगी। शहर के बाहर रानी के मकान के आसपास बहुत-से मकान बन गये और वहां अच्छी रौनक रहने लगी।
इधर रानी के चले जाने पर राजा अकेला रहा गया। रानी थी तब वह मौके के कामों को संभाले रहती थी। राजकाज में उचित सलाह देती थी। धूर्तों की दाल उसके सामने नहीं गलने पाती थी। अब उसके चले जाने पर धूर्तों की बन आई। धूर्त लोग आ-आकर राजा को लूटने लगे। अंधेरगर्दी बढ़ गई। नतीजा यह हुआ कि थोड़े ही दिनों में खजाना खाली हो गया। स्वार्थी कर्मचारी राज्य की सब आमदनी हड़प जाते थे। अब नौकरों का वेतन चुकाना कठिन हो गया। राज्य की ऐसी दशा देख राजा घबरा गया। वह अपना मन बहलाने के लिए राजकाज मंत्रियों को सौंपकर देशाटन के लिए निकल पड़ा।
जाते समय नगर के बाहर ही उसे कुछ ठग मिले। उनमें से एक काना आदमी राजा के पास आकर बोला, 'महाराज, मेरी आंख आपके यहां दो हजार में गिरवी रखी थी। वादा हो चुका है। अब आप अपने रुपये लेकर मेरी आंख मुझे वापस कीजिये।Ó
राजा बोला, 'भाई, मेरे पास किसी की आंख-वांख नहीं है। तुम मंत्री के पास जाकर पूछो।Ó
ठग बोला, 'महाराज, मैं मंत्री को क्या जानूं? मैंने तो आपके पास आंख गिरवी रखी थी, आप ही मेरी आंख दें। जब बाड़ ही फसल खाने लगी तब रक्षा का क्या उपाय? आप राजा हैं, जब आप ही इंसाफ न करेंगे तो दूसरा कौन करेगा? आप मेरी आंख न देंगे तो आपकी बड़ी बदनामी होगी?
राजा बड़ा परेशान हुआ। बदनामी से बचने के लिए उसने जैसे-तैसे चार हजार रुपये देकर उसे विदा किया। कुछ दूर आगे चला था कि एक बूचा आदमी उसके सामने आकर खड़ा हो गया। पहले के समान वह भी कहने लगा, 'महाराज, मेरा एक कान आपके यहां गिरवी रखा था। रुपया लेकर मेरा कान मुझे वापस कीजिये।Ó राजा ने उसे भी रुपया देकर विदा किया। इस प्रकार रास्ते में कई ठग आये और राजा से रुपया ऐंठकर चले गये। जो कुछ रुपया-पैसा साथ लाये थे, वह ठगों ने लूट लिया। वह खाली हाथ कुमारी चौबोला के देश में पहुंचे।
कुमारी चौबोला उस देश की राजकन्या थी। उसका प्रण था कि जो आदमी मुझे जुए में हरा देगा उसी के साथ विवाह करूंगी। राजकुमारी बहुत सुन्दर थी। दूर-दूर के लोग उसके साथ जुआ खेलने आते थे और हार कर जेल की हवा खाते थे। सैकड़ों राजकुमार जेल में पड़े थे।
मुसीबत के मारे यह राजा साहब भी उसी देश में आ पहुंचे। चौबोला की सुन्दरता की खबर उनके
कानों में पड़ी तो उनके मुंह में पानी भर आया। उनकी इच्छा उसके साथ विवाह करने की हुई। राजकुमारी ने महल से कुछ दूरी पर एक बंगला बनवा दिया था। विवाह की इच्छा से आनेवाले लोग इसी बंगले में ठहरते थे। राजा भी उस बंगले में जा पहुंचा। पहरेदार ने तुरंत बेटी को खबर दी। थोड़ी देर बाद एक तोता उड़कर आया और राजा की बांह पर बैठ गया। उसके गले में एक चिटठी बंधी थी, जिसमें विवाह की शर्तें लिखी थीं। अंत में यह भी लिखा था कि यदि तुम जुए में हार गये तो तुम्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी। राजा ने चिटठी पढ़कर जेब में रख ली।
थोड़ी देर बाद राजा को राजकुमारी के महल में बुलाया गया।