बुद्ध धर्म पतन दे कोई तीन कारण दसों punjabi ma writing
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१. सम्राट् अशोक जैसा इतिहास प्रसिद्ध सम्राट् ने कलिंग युद्ध के पश्चात उसके बौद्ध धर्म ग्रहन करने पर इसे राजधर्म बना दिया गया। कुछ विद्वानो का यह भी कहा है कि बौद्ध धर्म के भिक्षुओं का नैतिक आचरण गिर जाने के कारण ही बौद्ध धर्म का पतन हुआ है किन्तु यह सत्य नहीं है।
२. भारत में बौद्ध धर्म का जन्म ईसा पूर्व ६ वी शताब्दी को हुआ था किन्तु कालक्रम में भारत से बौद्ध धर्म लगभग समाप्त हो गया जबकि विश्व के अन्य भागों में बौद्ध धर्म का प्रसार एवं विकास होता रहा। बौद्ध धर्म का विकास ईसा पूर्व ६ वी शताब्दी से प्रारम्भ होकर, सम्राट अशोक द्वारा कलिंग में लाखों लोगों का नरसंहार करने के पश्चात नरमुंडों के पहाड़ देखकर आत्मग्लानि के कारण बौद्ध धर्म स्वीकार कर राज्यधर्म के रूप में प्रतिस्थापित किया। जो कालांतर में उनके राज प्रभुत्व के कारण भारत में ही नहीं- चीन, जापान, स्याम, लंका, अफगानिस्तान, सिंगापुर, थाईलैंड और एशिया के पश्चिमी देशों के समस्त हिन्दू राष्ट्रों तक फैल गया। सम्राट् अशोक जैसा इतिहास प्रसिद्ध सम्राट् ने कलिंग युद्ध के पश्चात उसके बौद्ध धर्म ग्रहन करने पर इसे राजधर्म बना दिया गया। कुछ विद्वानो का यह भी कहा है कि बौद्ध धर्म के भिक्षुओं का नैतिक आचरण गिर जाने के कारण ही बौद्ध धर्म का पतन हुआ है किन्तु यह सत्य नहीं है। प्रत्येक धर्म कि शुरुआत अच्छे उद्देश्यों से होती है किन्तु बाद में इसमे तरह तरह की भ्रांतिया आ जाती है वैसे ही बौद्ध धर्म के साथ भी हुआ था। किन्तु केवल यह कारण ही पर्याप्त नहीं है। बौद्धकाल ने ना केवल वृहद विकास का दौर देखा है अपितु सशक्त प्रथम केन्द्रिय सत्ता भी देखी है। ईस काल में भारतवर्ष् अध्यात्म एवम ज्ञान का केन्द्र बन गया था। बौद्ध धर्म के तीव्र विस्तार से उस समय धार्मिक एवम राजनैतिक के अतिरिक्त आर्थिक विकास भी खूब हुआ। भारत में बौद्ध धर्म के पतन के अनेक कारण गिनाये जाते हैं।
३. मौर्य साम्राज्य के पतन के साथ ही भारत में बौध्द धर्म कमजोर होने लगा था, साथ ही वैदिक धर्म का प्रसार फिर से बढ़ रहा था। वैदिक धर्म में भारत के अन्य धर्म और सम्प्रदाय ही नहीं विदेशी आक्रमणकारियों के दर्शनों और सिधांतों को भी आदर दिया जाने लगा था और यह वैदिक धर्म का हिस्सा बनते जा रहे थे, इससे वैदिक धर्म की व्यापकता बड़ने लगी थी। मौर्य सम्राज्य के पतन के बाद अनेक बौद्ध और हिन्दू राजा हुयें उन्होनें अपने अपने धर्म को संरक्षण तो दिया लेकिन धर्मप्रसार के लिए मौर्यों की तरह दुसरे धर्मो को क्षति नहीं पहुँचाई। यही कारण है कि मौर्य शासन के बाद भी बौध्द एवं वैदिक धर्म बहुत समय तक सह-अस्तित्व में रहे, उनमें प्रतिस्पर्धा केवल अपने अपने दर्शन को पुनःस्थापित करने के लिए थी।
गुप्त काल में बौद्ध धर्म के मुकाबले वैदिक धर्म का खुब विकास हुआ, तो कुषाण एवं हर्षवर्धन के समय में बौद्ध धर्म ने फिर से अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करने की कोशिश की। बौद्ध और हिन्दू धर्म को सबसे अधिक नुकसान बार बार हुए विदेशी आक्रमणों से हुआ। पहले से ही कमजोर हो चुका बौद्ध धर्म इन आक्रमणों के बाद पुरी तरह नहीं संभल पाया। पाँचवी शताब्दी ईसवी के अंत में पश्चिमोत्तर भारत (आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान) पर मध्य एशिया (अथवा कुछ संदर्भों में उत्तरी चीन) की प्रजाति हूणों ने तोरामन के नेतृत्व मे हमला कर दिया। गुप्त राजा स्कंदगुप्त की सेना ने उसको खदेड़ दिया लेकिन उसने वहाँ पर काफी लूटपाट और विध्वंस किया था। उसके कुछ वर्षों बाद तोरामन के पुत्र मिहिरकुल ने फिर से आक्रमण कर दिया और मालवा से लेकर मध्य एशिया तक अपने राज्य की स्थापना कर ली। इसने बड़ी ही क्रुरता से आक्रमण किया एवं कई बौद्ध विहार और हिन्दू एवं जैन मंदीरों को नष्ट कर दिया। इसने तक्षशीला के बौद्ध विहारो पर बहुत क्रुरता की और लगभग उनको नष्ट कर दिया और ग्रंथों को जला दिया। तक्षशीला बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थल था, यह भारत, मध्य एशिया और चीन को बोद्ध धर्म से आपस में जोड़ने वाला केंद्र था। कहते हैं कि मिहिरकुल बौद्ध बनना चाहता था लेकिन उसकी हिंसक प्रवृति के कारण तिरस्कार स्वरुप बौद्ध भिक्षुओं ने एक कनिष्ठ भिक्षु को उसे बौध शिक्षा देने के लिए उसके दरबार में भेज दिया, इसका पता चलने पर मिहिरकुल ने इसे अपना अपमान समझा। इसके बाद प्रतिशोध स्वरूप उसने बौध्दों पर बहुत हत्याचार किया। मिहिरकुल ने मथुरा में हिन्दू मंदीरों भी नष्ट किया था, जिसके कारण उसे हिन्दू ग्रंथों में मलेच्छ भी कहा गया है। शायद बाद में वह शिवभक्त बन गया था जिसका पता उसकी मुद्रा पर ऋषभ की आकृति से चलता है। मिहिरकुल की मृत्यु के बाद हूण भारत में ही बस गये और वैदिक धर्म अपना लिया।
हूणों के बाद भी भारत पर हमले होते रहे लेकिन यह पश्चिमोत्तर भारत तक ही सीमित रहे। भारत पर अभी तक हुए विदेशी आक्रमणों का उद्देश्य अधिकांशतः लूटपाट था, धार्मिक स्थलों पर हुये आक्रमण भी इसी का हिस्सा थे। लेकिन केवल लूटपाट ही नहीं भारत की धार्मिक व्यवस्था और स्थानीय संस्कृति को नष्ट करने के उद्देश्य से अरब और तुर्क के मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत पर हमला किया जिसने बौद्ध और हिन्दू धर्म ही नहीं भारत की संस्कृति को भी बहुत नुकसान पहुँचाया मुस्लिम आक्रांताऔं ने भारत में हजारों मंदिर और बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया। बख्तियार खिलजी ने नालंदा के बौद्ध विहार और नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया और पुस्तकालय को जला दिया। इसके पश्चात भी बहुत से मुस्लिम आक्रांता एवं शासक भारत आये और भारत पर शासन ही नहीं किया बल्कि यहां की संस्कृति और धार्मिक स्थलों को नष्ट करते रहे और लोगों को मुसलमान बनाते रहे। इन नर संहारों और विध्दवंशों का उल्लेख तत्कालिक मुस्लिम लेखकों ने भी इन आक्रांताओं और शासकों की गौरव गाथाओं में किया है।
कालांतर में स्थानीय हिन्दू राजाओं के संरक्षण में कई मंदिरों का पुनः निर्माण तो फिर से हो गया लेकिन बौद्ध धर्म को ऐसा संरक्षण नहीं मिला और भारत से बौद्ध धर्म लगभग समाप्त हो
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