बंदी उसमें जीवन-अंकुर,
जो तोड निखिल जग के बंधन,
पाने को है निज सत्व, मुक्ति!
चिर निद्रा से जग, बन चेतन
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इन पंक्तियों के माध्यम से कवि चेतना को प्रोत्साहित करते हुए कहता है कि उस छोटे से बीज में जीवन रूपी जीने की शक्ति निहित है और दुनिया के अनेक बंधन को तोड़ते हुए उन्मुक्त होकर विकसित होने के तत्पर है मानव को भी स्वयं की अस्मिता को बनाए रखने के लिए संघर्ष से हार न मानकर स्वयं की शक्ति और खूबियों का प्रयोग कर निरंतर प्रयास रखना चाहिए
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