Hindi, asked by archnakumarijorwal, 3 months ago

बुद्वि अगर स्वार्थ से मुक्त हो तो हमे उसकी प्रभुता मानने में कोई आपत्ति नहीं। समाजवाद का यही आदर्श है हम साधुओं-महात्माओं के सामने इसलिये सिर झुकाते हैं कि उनमें त्याग का बल है।इसी तरह हम बुद्वि के हाथ में अधिकार भी देना चाहते हैं, सम्मान भी, नेतृत्व भी लेकिन सम्पत्ति किसी तरह नहीं।बुद्वि का अधिकार और सम्मान व्यक्ति के साथ चला जाता है लेकिन उसकी सम्पत्ति विष बोने के लिये उसके बाद और भी प्रबल हो जाती है।बुद्वि के बगैर किसी समाज का संचालन नहीं हो सकता। हम केवल इस बिच्छु का डंक तोड़ देना चाहते हैं। 1. उक्त अवतरण का शीर्षक है-​

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Answered by aaliyatabassumshaikh
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