बादल, गरजो!-
घेर घेर घोर गगन,
धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना
के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा
कविता
फिर भर दो-
बादल, गरजो!
explaination
Answers
बादल, गरजो!-
घेर घेर घोर गगन,
धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना
के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा नूतन कविता
फिर भर दो-
बादल, गरजो!
सप्रसंग : यह पंक्तियां कभी ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित कविता “उत्साह” से ली गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बादलों का आह्वान करते हुए उन्हें क्रांति चेतना और विध्वंस का प्रतीक बनाया है।
व्याख्या : कवि बादलों से संसार को एक नया जीवन देने की प्रेरणा देने का आह्वान करते हुए कहता है कि वह बादलों तुम गरजो और पूरे आसमान को घेरकर चारों तरफ मूसलाधार बारिश कर दो। तुम दिखने में अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रहे हो। तुम्हारा स्वरूप सुंदर काले घुंघराले बालों वाले अबोधबालक की तरह प्रतीत हो रहा है। तुम अपनी घोर गर्जना करने वाले हो, और तुम तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा धारण किए हो। तुम इस संसार में नवीन सृष्टि की रचना करने वाले हो। तुम जल रुपी जीवन प्रदाता हो और तुम्हारे अंदर वज्रपात करने की शक्ति है। जिससे तुम लोगों के दुख दर्द पर वज्रपात करके नवजीवन का संचार करते हो। इसलिए तुम बरस जाओ और हम सब में एक नया जीवन भर दो। हमारे अंदर नवजीवन का संचार कर दो, ताकि गर्मी की तेज ताप से जलते हुए धरती के यह सारे बेचैन प्राणी जल से तृप्त हो जाएं।
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