बादल की आत्मकथा निबंध लेखन
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या मन की जु दसा घनआनँद जीव की जीवनि जान ही जानै।।
मैं कभी कभी कुछ दिनों के लिए अपनी कृपा डोर खीँच लेता हूँ तो अनावृष्टि से क्या स्थिति हो जाती है ,आप अनुमान लगा सकते हैं। बंगाल का अकाल अभी भी लोग भूल नहीं सके हैं। वह मेरा क्षणिक रोष था। प्रकृति की प्रसन्नता ,धरती का सा उल्लास पुलक मेरी मुट्ठी में बंद है।
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