बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
मुहावरे का अर्थ लिखिए
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मतलब, किसी भी चीज का अर्थ, उसका मूल्य और उसकी विशेषता सब लोग नहीं समझ पाते। कोई ऐसे भी होते है, जो पत्थर समझ हीरा फेंक देते है।
मुझे खुद भी ये प्रश्न पड़ता है, की किस आधार पर कहा गया है, की बंदर को अदरक का स्वाद नहीं पता? लेकिन हम इंसानों को ये बात किसने बताई? चलो अगर मान भी ले ले की बंदर को सचमुच अदरक का स्वाद नहीं पता। लेकिन फिर बंदर तो इस बारे में कुछ भी नहीं बोल पाएगा। बंदर की बुद्धि इतनी विकसित नहीं है, की वो समझ सके, की उसे अदरक का स्वाद नहीं लगे, इसका मतलब ये नहीं कि अदरक का स्वाद ही नहीं। इतनी समझ होती तो बंदर काहे कहलाता?
तो ये तो पक्की बात है, की जीभ से स्वाद लेने में, अगर बंदर और अदरक का मेल नहीं बैठे, तब भी इंसानों को ये बात न कोई बंदर बता पाएगा, न इंसान इस बात को अपने आप जान पाएगा। तो ये कहावत आई कहासे?
हम जानते है कि बंदर पेड़ के ऊपर रहते है। पेड़ की डालियों पर झूलते है, उसी के फल तोड़ कर खाते हैं। तो बंदर का जीवन, चर्या और खानपान सब जमीन के ऊपर है।
तो जाहिर है की खाने के वे पदार्थ जो जड़ों में पाएं जाते है, वो बंदर ने खाएं ही नहीं होंगे। तो अदरक जो असल में जड़ है उस पौधे की, वो तो बंदर ने खाई होगी नहीं। इसलिए बंदर को अदरक का स्वाद नहीं पता।
लेकिन ये भी सम्पूर्ण सच नहीं हुआ। असल बात गहरी है।
जो सिर्फ ऊपरी सतह पर उछलकूद करे, उसे कहां से पता चलेगी गहराई की बात? बंदर तो पेड़ के ऊपर है, झूल रहा है। डाली डाली देखी है लेकिन जड़ तक कभी पहुंचा ही नहीं। जो डाली पर है, पत्तों में है, फूलों में है, उस जीवन प्रवाह का उगम या उस का मूल स्थान कहा है? ये खोजोगे तो आप को मिलेगा अस्तित्व कि जड़ों का रहस्य। इसलिए कहावत में अदरक का नाम लिया है, क्यों की अदरक जड़ों में मिलता है।
तो जिसने कभी जड़ों कि खोज की ही नहीं, जिसने बुद्धि के इस्तेमाल पर जोर दिया ही नहीं, उसे क्या पता मिठास या सरसराहट उस स्वाद की जो किसी बात के गहरी जड़ों को समझने ने से मिलता है? ये है इस कहावत का सही संदर्भ।