बूढ़ा आकाश ध्यान जब यह धाता,
मुझ में यौवन का नया वेग जग जाता था।
इसके चिंतन में डुबकी एक लगात ही,
तन कौन कहे, मन भी मग रंग जाता था।
देवा ने कहा, बड़ा सुख था इसके मन की
गहराई में बने और उतराने में।
माया बोली, मैं कई बार भी भूल गई,
अपने को गोपन भेद इस बतलाने में।
योगी था, बाला सत्य, भागता मैं फिरता,
यह जाल बढ़ाए हुए दौड़ता चलता था।
जब-जब लेता यह पकड़ और हँसने लगता,
धोखा देकर मैं अपना रूप बदलता था।
1. सूरज की क्या प्रतिक्रिया थी?
2. आकाश के मन में गीतकार के मरने पर क्या भाव उमड़े?
3. देवाँ और माया के विचारों में क्या अंतर दिखाई दे रहा है?
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