बूढ़ी काकी लोगों का ध्यान अपने कष्टों को ओर किस तरह आकर्षित करती थीं
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इसमें इंसान की समझ बच्चों सी हो जाती है। नाटक की कहानी कुछ यूं थी कि बूढ़ी काकी में जिह्वा स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष नहीं थी। अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने के लिए रोने के सिवा कोई दूसरा सहारा उसके पास नहीं रहता। पूरे परिवार में काकी से किसी को कोई अनुराग था तो वह था बुद्धिराम की छोटी लड़की लाडली।
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