बूढ़ी काकी में कोंन सी चेष्ठा सेश बची थी।
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बूढ़ी काकी में जिह्वा –स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने का रोने के अतिरिक्त दूसरा कोई सहारा ही। समस्त इन्द्रियां, नेत्र, हाथ और पैर जवाब दे चुके थे।
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