Hindi, asked by dojacat, 5 months ago

बाढ़ का दृश्य पर अनुच्छेद​

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Answered by helperhand44
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जब धरती को पानी की प्यास लगती है, तब तो पानी की बूँद भी नहीं बरसती और कभी पानी इतना बरसता है कि नदियाँ उसे अपने किनारों के आँचल में समेट नहीं पातीं। तो गंगा, गोदावरी, गोमती जड़ चेतन के लिए वरदान बनी होती हैं, वही बाढ़ के रूप में अभिशाप बन जाती हैं। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष बाढ़ के कारण जान माल की हानि होती है।

Answered by mmmohanty1987
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बाढ़ का दृश्य पर लघु निबंध

बाढ़ अर्थात् नदी का उफनता हुआ जब अब अपने किनारे से ऊपर ऊपर बहते हुए आम जन जीवन तक पहुँचकर सम्पूर्ण जीवन को अस्तव्यस्त कर देता है तब इसे हम बाढ़ कहते हैं। प्रकृति की लीला भी बड़ी न्यारी है। जब धरती को पानी की प्यास लगती है, तब तो पानी की बूँद भी नहीं बरसती और कभी पानी इतना बरसता है कि नदियाँ उसे अपने किनारों के आँचल में समेट नहीं पातीं। तो गंगा, गोदावरी, गोमती जड़ चेतन के लिए वरदान बनी होती हैं, वही बाढ़ के रूप में अभिशाप बन जाती हैं।

हमारे देश में प्रत्येक वर्ष बाढ़ के कारण जान माल की हानि होती है। करोड़ों रूपयों की हानि इन बाढ़ों के कारण देश को उठानी पड़ती है। जब देश गुलाम था, तो इस प्रकोप का सारा दोष हम अपने गोरे शासको को देते थे। बाढ़ों का प्रकोप कुछ भी कम नहीं हुआ। बाढ़ आने पर हमारी सरकार सहायता कार्य तुरन्त शुरू कर देती है। यह राष्ट्रीय सरकार का कर्त्तव्य भी है। देश में बाढ़ों की रोकथाम के लिए बहुत कार्य होता है। हर वर्ष की बाढ़ों व उनसे होने वाली जन धन की हानि से राष्ट्र का चिन्तित होना स्वाभाविक है। पिछले कुछ वर्षों से इस ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। आने कुछ वर्षों में हम इनसे छुटकारा पा सकेंगे, यह आशा अब देशवासियों की लगी हुई है।

बाढ़ के दृश्य का रोमांचक स्वरूप तो गाँवों में दिखाई पड़ता है। एक बार मैं छात्रावास से 15 अगस्त के लघु अवकाश पर गाँव गया हुआ था। घर पहुँचने पर पता चला कि लगातार एक सप्ताह से वर्षा हो रही है। निरन्तर मूसलाधार पानी बरस रहा है। जैसे प्रलय की बरसात हो। इसके कारण ही गंगा का जल भी लगातार बढ़ रहा है। इससे बाढ़ का भयानक दृश्य काल की तरह सबको कंपा रहा है। सबको अब प्राणों के लाले पड़ गए हैं। बाढ़ इस तरह बढ़ रही है, जैसे वह अपने में ही सब कुछ समा लेने के लिए आ रही हो।

मैंने देखा कि अब कुछ ही दूर गंगा का जल भयानक रूप धारण किए हुए बड़ी सी बड़ी ऊँचाई पर चढ़ने के लिए प्रयत्नशील है। गाँव से बाहर के लोग दूर ऊँचे ऊँचे टीलों पर शरण लिए हुए थे। मैं भी घर के सदस्यों की सुरक्षा के लिए उस स्थान को देखने गया, जहाँ जरूरत पड़ने पर शरण ली जा सके। मैंने उस टीले के ऊँचे भाग पर देखा कि गंगा की धार उल्टी दिशा में समुन्द्र की लहरों सी उमड़ती हुई सर्र सर्र करके पलक झपकते ही न जाने दूर हो रही है। फिर दूर से आती हुई अपने काल का समान प्रयास से विध्वंश का रूप लिए दिखाई दे रही है। इस क्रूर और ताण्डवकारी गंगा के जल में कहीं जीवित या मरे हुए पशु आदमी और जीवन की नितान्त आवश्यकताएँ बेरहम विनाश की गोद में बह रही हैं।

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