बाढ़ की विभीषिका के कारण बेघर लोगों की कठिनाइयों पर रिपोर्ट तैयार कीजिए।
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भारत में हर साल आने वाली बाढ़ में सैकड़ों लोग मरते हैं और लाखों विस्थापित होते हैं. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर इसे रोकने के तत्काल उपाय नहीं हुए को आने वाले सालों में देश के प्रमुख शहर भी प्रभावित होंगे.
दुनिया भर में बाढ़ से होने वाली मौतों में से 20 फीसदी भारत में ही होती है. विश्व बैंक के एक ताजा अध्ययन में यह बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से 2005 तक देश की आधी आबादी के रहन-सहन के स्तर में और गिरावट आ सकती है. वर्ष 2018 में बाढ़ और इसकी वजह से होने वाले हादसों में अब तक लगभग छह सौ लोगों की मौत हो चुकी है.
भयावह आंकड़े
केंद्र सरकार की ओर से जुलाई के आखिरी सप्ताह में जारी आंकड़ों के मुताबिक, 1953 से 2017 के बीच 64 वर्षों में बाढ़ से एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. यानी हर साल औसतन 1,654 लोगों के अलावा 92,763 पशुओं की मौत होती रही है. विभिन्न राज्यों में आने वाली बाढ़ से सालाना औसतन 1.680 करोड़ की फसलें नष्ट हो जाती हैं और 12.40 लाख मकान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते 64 वर्षों के दौरान 2.02 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ और 1.09 लाख करोड़ की फसलों का. इसके अलावा बाढ़ से 25.6 लाख हेक्टेयर खेत भी नष्ट हो गए. इस दौरान बाढ़ से 205.8 करोड़ लोग प्रभावित हुए. देश में बाढ़ से होने वाली मौतों की तादाद वर्ष 1953 में सबसे कम (37) थी जबकि वर्ष 1977 में यह सबसे ज्यादा (11,316) थी.
इस साल भी विभिन्न राज्यों में बाढ़ का कहर जारी है. इसमें अब तक लगभग छह सौ लोगों की मौत हो चुकी है और करोड़ों की संपत्ति व फसलों को नुकसान पहुंचा है. उत्तर प्रदेश में बाढ़ का प्रकोप सबसे ज्यादा है और यहां बाढ़ व उससे संबंधित घटनाओं में 154 लोगों की मौत हो चुकी है. पश्चिम बंगाल और केरल में भी बाढ़ से दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इसके बाद पूर्वोत्तर राज्यों का स्थान है. असम, मणिपुर, त्रिपुरा और नागालैंड में अब तक बाढ़ और जमीन धंसने की घटनाओं में 73 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से 41 लोग तो अकेले असम में ही मारे गए हैं. देश के छह राज्यों में बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर बना दिया है.