Geography, asked by hemanthsy8534, 1 year ago

बाढ़ नियंत्रण के सुझाव दीजिये।

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Explanation:

भारत सरकार एवं राज्य सरकारें बाढ़ की विभीषिका को कम-से-कम करने के लिये योजना काल से ही प्रयत्नशील हैं। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में अलग से धन की व्यवस्था की जाती है। इस दिशा में किये गये प्रयासों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:-

(1) राष्ट्रीय बाढ़-प्रबंधन कार्यक्रम:- सन 1954 की भीषण बाढ़ के बाद भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय बाढ़-प्रबंधन कार्यक्रम की घोषणा की। यह कार्यक्रम तीन चरणों में विभाजित किया गया है, (1) तात्कालिक, (2) अल्पकालिक एवं (3) दीर्घकालिक। तात्कालिक बाढ़ प्रबंधन, बाढ़ से सम्बंधित आँकड़ों के संकलन तथा आपातकालीन बाढ़ सुरक्षा उपायों तक सीमित है। अल्पकालिक चरण में कुछ चुने हुए क्षेत्रों में नदियों के किनारे तटबंधों का निर्माण किया जाता है, जबकि, दीर्घकालिक चरण में वर्षा के पानी का भंडारण; नदियों, सहायक नदियों पर जलाशयों के निर्माण कार्य आदि किये जाते हैं।। इन कार्यक्रमों पर पहली योजना में 133.77 करोड़, रुपये, दूसरी योजना में 49.15 करोड़ रुपये, तीसरी योजना में 86 करोड़ रुपये, चौथी योजना में 171.8 करोड़ रुपये, पाँचवीं योजना में 298.61 करोड़ रुपये, छठीं योजना में 596.07 करोड़ रुपये तथा सातवीं योजना में 941.58 करोड़ रुपये का निवेश किया जा चुका है। सन 1954 से मार्च 1989 तक लगभग 15,600 किलोमीटर लम्बे तटबंधों का निर्माण किया जा चुका है, 33,100 किलोमीटर लम्बी जल-निकासी नालियाँ खोदी गयी हैं, 765 नगर-बचाव हेतु वनरोपण कार्य किया गया है तथा 4,705 ग्रामों को ऊँचाई वाले सुरक्षित स्थानों पर बसाया गया है।

(2) जलाशयों का निर्माण:- जिन नदियों की निचली धाराओं में सर्वाधिक एवं विनाशकारी बाढ़ आती थी, उन पर बड़े-बड़े बाँध बनाकर जलाशयों में वर्षा के पानी को रोकने की व्यवस्था की गयी है। इन वृहत-स्तरीय परियोजनाओं में महानदी पर हीराकुंड बाँध, दामोदर नदी घाटी परियोजनाओं सतलुज पर भाखड़ा बाँध, व्यास पर पोंग बाँध तथा ताप्ती पर उकाई बाँध प्रमुख हैं।

(3) समुद्री क्षेत्रों में बाढ़-नियंत्रण:- केरल, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश के समुद्र-तटीय क्षेत्रों में समुद्री बाढ़ आती है। समुद्री तटों पर क्षरण को रोकने की कई परियोजनाएँ प्रारम्भ की गयी हैं। केरल राज्य में सर्वाधिक प्रभावित 320 किलोमीटर लम्बे समुद्री तट में से 311 किलोमीटर लम्बे तट को मार्च, 1990 के अंत तक प्रतिरक्षित कर लिया गया है। इसके अतिरिक्त 42 किलोमीटर लम्बी सामुद्रिक दीवार को मजबूत बनाया गया है। इसी प्रकार कर्नाटक राज्य में मार्च 1990 के अंत तक 73.3 किलोमीटर लम्बे समुद्री तट को सामुद्रिक क्षरण से रोकने हेतु बचाव कार्य किये गये हैं।

(4) बाढ़ का पूर्वानुमान एवं चेतावनी:- बाढ़ प्रबंध हेतु पूर्वानुमान लगाना और पहले से चेतावनी देना महत्त्वपूर्ण तथा किफायती उपायों में से एक है। भारत में यह कार्य सन 1959 से ही किया जा रहा है। केन्द्रीय जल आयोग ने देश की अधिकांश अन्तरराज्यीय नदियों पर कई बाढ़ पूर्वानुमान तथा चेतावनी केन्द्र स्थापित किये हैं। इस समय 157 बाढ़ पूर्वानुमान केन्द्र कार्यरत हैं, जो देश की 72 नदी बेसिनों में हैं। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5,500 बाढ़ सम्बंधी पूर्वानुमान जारी किये जाते हैं। इनमें से 95 प्रतिशत अनुमान शुद्धता की स्वीकृृत सीमान्तर्गत होते हैं।

(5) ब्रह्मपुत्र बाढ़-नियंत्रण बोर्ड :- ब्रह्मपुत्र और बारक नदी घाटी देश में बाढ़ से प्रभावित होने वाला प्रमुख क्षेत्र है। इस क्षेत्र में बाढ-नियंत्रण का मास्टर प्लान तैयार करने और इसे कार्यान्वित करने के लिये भारत सरकार ने संसद के एक अधिनियम द्वारा सन 1980 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड गठित किया है।

आठवीं पंचवर्षीय योजना में बाढ़ नियंत्रण :-आठवीं पंचवर्षीय योजना में बाढ़ नियंत्रण हेतु 1623.37 करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित किया गया है जो सातवीं योजना के परिव्यय से 71.35 प्रतिशत अधिक है। आठवीं योजना में बाढ़-नियंत्रण हेतु निर्धारित परिव्यय में से 1293 करोड़ रुपये राज्यों, 48.28 करोड़ रुपये संघ राज्य क्षेत्रों तथा 282.09 करोड़ रुपये केन्द्रीय क्षेत्र के लिये निर्धारित किए गए हैं। इस योजना में सर्वाधिक परिव्यय (280 करोड़ रुपये) प. बंगाल के लिये निर्धारित किया गया है, जो सातवीं योजना के वास्तविक व्यय (105 करोड़ रुपये) से 166.67 प्रतिशत अधिक है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश के लिये आठवीं योजना में मात्र 70 करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित है, जो सातवीं योजना के वास्तविक व्यय 102 करोड़ रुपये से 56.52 प्रतिशत कम है। इसी प्रकार हरियाणा को सातवीं योजना के निर्धारित परिव्यय से इस बार कम आवंटन किया गया है। आंध्र प्रदेश के लिये आठवीं योजना में बाढ़-नियंत्रण हेतु निर्धारित परिव्यय सातवीं योजना की तुलना में 423.3 प्रतिशत अधिक है। आठवीं योजना में बाढ़-नियंत्रण हेतु अपनायी जाने वाली कार्यनीति के प्रमुख तत्व निम्न प्रकार हैं:-

1. जलाक्रांत क्षेत्रों की स्थिति तथा स्वरूप का पता लगाने तथा मौजूदा सिंचाई परियोजना क्षेत्रों में लवण/खारी जमीनों का मूल्यांकन करने के लिये एक क्रमबद्ध सर्वेक्षण किया जायेगा। ऐसी भूमि का उद्धार करना और किफायती ढंग से उसकी उत्पादन क्षमता बहाल करना एक ऐसा क्षेत्र होगा जिस पर अधिक जोर दिया जायेगा।

2. राज्य सरकारों तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा बाढ़ सम्बंधी पूर्वानुमानों और चेतावनी प्रणाली का अधिक क्षेत्रों तक विस्तार किया जायेगा।

3. राज्य सरकारों तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा विभिन्न नदी घाटियों के लिये बाढ़ नियंत्रण सम्बंधी मास्टर प्लान तैयार किये जायेंगे। कुछ नदी घाटियों के लिये पहले से तैयार किये गए मास्टर प्लानों को और अधिक विस्तृत बनाने और, जहाँ आवश्यक है, अद्यतन करने के बाद विस्तृत बनाने की ओर अधिक ध्यान दिया जायेगा।

4. राज्य सरकारों को बाढ़-नियंत्रण निर्माण कार्यों का बड़े पैमाने पर कार्योत्तर मूल्यांकन करना चाहिए। इन मूल्यांकन अध्ययनों के आधार पर प्रशासनिक तथा तकनीकी दोषों के बारे में सुधारात्मक कार्रवाई की जाएगी।

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