baago ke suraksha par apne vechar prakat kijiye
Answers
Answer:
एक ऐसे संसार की कल्पना करें जिसमें हमारे परिवेश की शोभा बढ़ाने वाला कोई जानवर न हो । क्या सह सम्भव है कि हम अकेले ही इस पृथ्वी पर जीवन जी सकें ? नहीं यह सम्भव नहीं है क्योंकि पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन किसी-न-किसी रूप में परस्पर जुड़ा हुआ है ।
सभी जीव अपने जीवन के लिए किसी-न-किसी प्रकार एक-दूसरे से जुडे हुए है । ऐसी परिस्थिति में मनुष्य को प्रत्येक वन्य प्राणी के साथ सह-अस्तित्व बनाए रखने की आवश्यकता है । चूंकि मनुष्य को पृथ्वी पर सर्वाधिक बुद्धिमान एवं स्थाई प्राणी समझा जाता है, इसलिए पर्यावरण और वन्य जीवों की सुरक्षा के प्रति मनुष्य का नैतिक उत्तरदायित्व सर्वाधिक है ।
वर्तमान में, बाघों की घटती संख्या लगातार प्राकृतिक अस्थायित्व के खतरे की ओर इशारा कर रही है । बाघ हमारे देश की राष्ट्रीय सम्पत्ति है तथा भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय जन्तु घोषित किया है । बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में हजारों की संख्या में बाघ मौजूद थे जो कि वर्तमान में लगातार कम होते जा रहे है ।
बाघों की गिरती संख्या को रोकने तथा पारिस्थितिकीय सन्तुलन बनाए रखने एवं बाघों की जनसंख्या में वृद्धि करने के उद्देश्य से 1 अप्रैल, 1973 को भारत में बाघ परियोजना का शुभारम्भ किया गया । इस परियोजना का शुभारम्भ देश के पहले नेशनल पार्क, ‘जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क’ से किया गया । बर्ल्ड वाइल्ड फण्ड एवं भारतीय वन्य जीव प्राणी बोर्ड द्वारा गठित एक विशेष कार्य-दल की संस्तुति पर यह परियोजना प्रारम्भ की गई थी ।
बाघ संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए भारत ने बाघ संरक्षित क्षेत्र, चिड़िया घर, वन्य जीव आरक्षण क्षेत्र आदि की व्यवस्था की है । इन सभी के द्वारा भारत में बाघ संरक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है । बाघ संरक्षण को बढावा देने के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अधिकरण की स्थापना की गई ।
रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक, उतराखण्ड तथा मध्य प्रदेश सर्वाधिक बाघ संख्या बाले प्रथम तीन राज्य हैं, जिनमें क्रमशः 406,340 तथा 308 बाघ मौजूद हैं । संख्या के अनुसार उत्तराखण्ड में बाघों की कष्टों में सर्वाधिक वृद्धि (2010 में राज्य में 227 बाघ थे जबकि 2014 में यह संख्या बढ़कर 340 हो गई) हुई है ।
बाघों की गिरती संख्या पर यद्यपि दुनिया के कई देश चिन्ता जाहिर कर चुके है किन्तु संगठित रूप से प्रथम प्रयास वर्ष 2010 में रूस के सेट पीटर्सबर्ग में किया गया, जहाँ प्रथम विश्व बाघ सम्मेलन का आयोजन किया गया । बाघ संरक्षण के इस विशेष सम्मेलन में वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या को दो गुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था ।
स्पष्ट है कि बाघ मुख्य रूप से दक्षिण पूर्वी एशिया, भारत, चीन तथा रूस में पाए जाते है । विश्व के केवल 7% क्षेत्रों में ही बाघ पाए जाते है । सम्मेलन में कहा गया है कि जहाँ बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर एवं जावा टाइगर पूर्ण रूप से खत्म हो चुके है, वहीं साईबेरियन एमूर टाइगर, बंगाल टाइगर, मलाया टाइगर आदि संकटग्रस्त प्रजाति हैं ।
बाघों की संख्या को दुगना करने के लिए पाँच साल में ही 36 करोड़ डॉलर यानि 175 अरब रुपये की आवश्यकता पड़ेगी । इस रकम के द्वारा बाघों के लिए सुरक्षित आवासों को सुनिश्चित किया जाएगा तथा बाघों को शिकारियों एवं अवैध व्यापार से बचाने का प्रयास किया जाएगा ।
इस सम्मेलन में कहा गया कि अमेरिका वह देश है जहाँ सर्वाधिक 1000 बाघों को कैद किया गया है तथा रूस में बाघों की संख्या 450 से भी कम बची है इस सम्मेलन में यह स्वीकार किया गया कि यह शिखर सम्मेलन बाघों को बचाने के लिए आखिरी मौका है । बाघों की स्थिति के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 29 जुलाई को बाघ दिवस मनाने की घोषणा पीट्सबर्ग सम्मेलन में की गई ।
वन्य जीव संरक्षण से जुड़ी संस्था वर्ल्ड वाइल्ड फण्ड के अनुसार, बाघों की संख्या घटने का मुख्य कारण मानवीय हस्तक्षेप है न कि प्राकृतिक क्रियाकलाप । इस संस्था के अनुसार यदि समय रहते समुचित प्रबन्ध न किए गए तो अगले 12 वर्षों में दुनिया से बाघों का नामोनिशान मिट सकता है ।