Hindi, asked by shrinkhlatigga, 1 year ago

baat athanni ki sandarbh

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Answered by Anonymous
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सुदर्शन का जन्म वर्ष 1896 ई. में सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनकी कहानियों का मुख्य लक्ष्य समाज व राष्ट्र को स्वच्छ व सुदृढ़ बनाना रहा था। भारत के ख्याति प्राप्त साहित्यकार और कहानी सम्राट प्रेमचन्द की भांति आप भी मूलत: उर्दू में ही लेखन कार्य किया करते थे। ये उर्दू से हिन्दी में आये थे। सुदर्शन की भाषा सहज, स्वाभाविक, प्रभावी और मुहावरेदार थी। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी था। ‘हार की जीत’ जैसी कालजयी रचना के इस लेखक के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है।सुदर्शन (1895-1967) प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार हैं। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी है। ये आदर्शोन्मुख यथार्थवादी हैं। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। अपनी प्रायः सभी प्रसिद‌ध कहानियों में इन्होंने समस्यायों का आदशर्वादी समाधान प्रस्तुत किया है।

सुदर्शन की भाषा सरल, स्वाभाविक, प्रभावोत्पादक और मुहावरेदार है। इनका असली नाम बदरीनाथ है।

लाहौर की उर्दू पत्रिका हज़ार दास्ताँ में उनकी अनेक कहानियाँ छपीं।  उन्हें गद्य और पद्य दोनों ही में महारत थी। “हार की जीत” पंडित जी की पहली कहानी है और 1920 में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी।

इन्होंने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे हैं।  फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद‌ध गीत तेरी गठरी में लागा चोर,‍ उन्ही के लिखे हुए हैं।

मुख्य रचनाएँ–  ‘हार की जीत’, ‘सच का सौदा’, ‘साईकिल की सवारी’, ‘पत्थरों का सौदागर’ आदि।

उद्देश्य –

बात अठन्नी का उद्देश्य हमारे समाज में कपटी लोगों के आचरण को जनता के सामने लाना है जिससे कि वह समझ सकें कि वह दोहरा जीवन जीते हैं.। साथ ही साथ लेखक इस विषय में जनता को संवेदनशील बना कर सही मार्ग को निर्धारित करना चाहता है । इंजीनियर और मजिस्ट्रेट जो दोनों ही रिश्वतखोर हैं अपने नौकरों के साथ असंवेदनशील बर्ताव करते हैं और बिचारे रसीला अठन्नी चुराने के गुनाह पर छह महीने कि सजा दे देते हैं । यह अत्यंत उपहासजनक है कि जो स्वयं पांच सौ और हजार रूपये तक की रिश्वत लेते हैं वो रसीला को अधन्नी के पीछे इतनी कठोर सजा सहने के लिए बाध्य कर देते हैं ।

तुलसीदास ने ठीक ही कहा है ‘समर्थ को नहीं कोई दोष गोसाईं ।

समाज में व्याप्त भेदभाव, भ्रष्ट्राचार, अन्याय और असमानता पर यह कहानी एक करारी चोट है,।

कथा वस्तु –

बात अठन्नी की, कहानी में कथाकार श्री सुदर्शन ने कहानी के माध्यम से समाज के कड़वे सच का परिचय करवाया है बाबू जगत सिंह पेशे से इंजिनियर थे .रसीला इनके यहाँ नौकर का काम करता था . एक बार रसीले को अपने बच्चे के बीमार होने की सूचना मिली . उसके पास रुपये नहीं थे . मालिक इंजिनियर साहब उसे जो वेतन देते थे ,वह उसी से अपना घर चलाता था . अपने बीमार बच्चों के इलाज़ के लिए रसीला ने अपने मालिक से रुपये मांगे ,परन्तु उन्होंने साफ़ – साफ़ इनकार कर दिया . रसीले ने पड़ोसी के चौकीदार रमज़ान से कुछ रुपये उधार लिए और अपने बच्चों के इलाज़ के लिए पैसे  भेज दिए . बच्चे स्वस्थ हो गए .कुछ समय बीतने पर रसीला ने रमज़ान को पैसे लौटा दिए परन्तु आठ आना शेष रह गया .क़र्ज़ के बोझ से वह शर्मिंदा होकर रमज़ान से आँखें नहीं मिलाता था .एक दिन बाबू जगत सिंह ने रसीला को पाँच रुपये की मिठाई खरीद कर लाने को कहा . रसीले ने पाँच रुपये की जगह साढ़े चार रुपये की मिठाई खरीदी और रमज़ान को अठन्नी लौटाकर समझा की क़र्ज़ उतर गया .लेकिन अपनी इस चालाकी को वह इंजिनियर साहब के नज़रों से छिपा नहीं पाया . रसीला की चोरी पकड़ी गयी . जगत सिंह ने उसे बहुत पीटा और पुलिस को पाँच रुपये देकर कहा की कबुलवा लेना .इंजिनियर साहब के पड़ोसी शेख सलीमुद्दीन थे जो कि पेशे से जिला मजिस्ट्रेट थे . उन्ही की कचहरी में रसीला पर मुकदमा चलाया गया जहाँ शेख साहब ने उसे छह महीने की सज़ा सुनाई . यह फैसला सुनकर रमज़ान को बहुत क्रोध आया ,उसने कहा की यह दुनिया न्याय नगरी नहीं अंधेर नगरी है क्योंकि अठन्नी की चोरी पर इतनी कठोर सज़ा सुनाई गयी ,जबकि बड़े – बड़े अपराधी पकडे नहीं जाते है .अतः गरीबों पर ही न्याय का शासन चलता है .

शीर्षक की सार्थकता –

साहित्य ही समाज का दर्पण होता है .”बात अठन्नी की” कहानी में कथाकार श्री सुदर्शन ने कहानी के माध्यम से समाज के कड़वे सच का परिचय करवाया है . पूरी कहानी अठन्नी पैसे के इर्द -गिर्द घूमती दिखाई देती है

रसीला को अपने बीमार बच्चों के इलाज़ के लिए अपने मित्र जो की पड़ोसी का चौकीदार रमज़ान है ,से पैसे लेकर भेजता है . बच्चों के ठीक हो जाने पर थोड़े -थोड़े करके पैसे चुका देता है ,लेकिन सिर्फ आठ आने बकाया रह जाते है .एक दिन अपने मालिक जगत सिंह द्वारा पाँच रुपये की मिठाई मगएं जाने पर वह आठ आने की हेरा -फेरी पर अपना उधार रमज़ान को चुका देता है .लेकिन उसकी यह चोरी मालिक द्वारा पकड़ ली जाती है और बहुत मार पड़ती है तथा वह पुलिस को सौंप दिया जाता है . अदालत में उसे ६ महीने की सज़ा सुना दी जाती है . इस पकार उसके साथ बहुत अन्याय हुआ था . इस दुनिया में गरीबों पर अमीरों द्वारा सिर्फ अपने स्वार्थ सिद्धि करने के लिए अत्याचार किये जाते है .सिर्फ आठ आने के लिए रसीला को मार भी खानी पड़ी तथा ६ माह की सज़ा भी दी गयी है . पूरी कहानी आरंभ से अंत तक अठन्नी के चारों घूमती है . अतः बात अठन्नी की शीर्षक ,पूरी तरह से सार्थक एवं उचित है .

Answered by iSomyaTiwary20
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Explanation:

फैसला सुनकर रमजान की आंखों में खून उतर आए सोचने लगा या दुनिया न्याय नगरी नहीं अंधेर नगरी है कहानी का दर्शन चाहिए बात अठन्नी की कहानी के माध्यम से हमारे न्याय व्यवस्था पर तीखा व्यंग किया है

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