baccho ke kaam par jane se kavi kyo chintit ha
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तो हम क्या कर सकते हैं, अपना समय बर्बाद कर रहे हैं ...।
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कवि के लिए बच्चों का काम पर जाना चिंता का विषय इसलिए बन गया है क्योंकि आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। जिस उम्र में उन्हें खेल-कूदकर अपने बचपन जीने का आनंद लेना चाहिए और स्वयं को स्वस्थ और सबल बनाना चाहिए , उस उम्र में वे काम करके अपना भविष्य अंधकारमय बना रहे हैं। उन्हें तो पढ़-लिखकर योग्य नागरिक बनना चाहिए न कि काम करना चाहिए।
Explanation:
बच्चों को काम पर जाते देखकर कवि के मन में प्रश्न उठ रहे हैं कि क्या उनके खेलने के लिए रखी गेंदें आकाश में गिर गई? उनकी विद्यालय की पुस्तकें दीमकों ने खा ली हैं? क्या उनके खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब कर नष्ट हो गए? क्या उनके विद्यालयों की इमारतें भूकंप में ढह गई? क्या उनके खेलने वाले बगीचे नष्ट हो गए जो इन्हें काम पर भेज दिया गया।
बच्चे उपर्युक्त सारी चीज़ों का उपयोग इसलिए नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। अतः धन के अभाव में वे अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं कर पा रहे तो ये सारी चीज़ें लेने का तो वे सोच ही नहीं सकते।
काम पर जाने वाले बच्चे खेल के साधनों जैसे- गेंदें, खिलौने एवं क्रीड़ा स्थल तथा बगीचों से तो वंचित हैं ही इसके अतिरिक्त वे शिक्षा संबंधी सुविधाओं से भी वंचित रह गए हैं।