Bachpan hi acha hai nibhadh
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मेरे बचपन के दिन बहुत ही अच्छे और सुहावने थे यह दिन किसी जन्नत से कम नहीं थे. इन दिनों में मैंने बहुत मस्तियां और शैतानियां की थी. बचपन के वो दिन भूलाए नहीं भूले जा सकते है. मेरा बचपन हमारे गांव में ही बीता है. मेरे पिताजी किसान है.
मैं बचपन में बहुत शरारती और चंचल था जिसके कारण मुझे कभी कभी डांट भी पड़ती थी तो उतना ही प्यार और दुलार भी मिलता था. मैं बचपन में माँ से छुपकर माखन खा जाता था माँ कुछ समय के लिए तो गुस्सा होती लेकिन मेरी चंचलता के कारण मुझे माफ भी कर देती थी.
मैं बचपन में सुबह उठते ही अपने दोस्तों के साथ खेलने निकल जाता था हम दोपहर तक खूब खेल खेलते थे इससे हमारे कपड़े मिट्टी के भर जाते थे और हम इतने गंदे हो जाते थे कि हमारी शक्ल पहचान में नहीं आती थी यह दिन बहुत ही अच्छे थे.
मैं बचपन में कबड्डी, गुल्ली डंडा, खो खो, पोस्म पा, दौड़-भाग, लंगड़ी टांग आदि प्रकार के खेल खेलता था. इन खेलों को खेलते समय कब सुबह से शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था मां मुझे हमेशा डांटती थी कि तू भोजन तो समय पर कर लिया कर, लेकिन बचपन था ही ऐसा की खेल खेलते समय भूख लगती ही नहीं थी.
कभी-कभी मैं पिताजी के साथ खेत में भी जाया करता था जहां पर पिताजी मुझे फसलों के बारे में और वहां पर रहने वाले पशु पक्षियों के बारे में बताते थे. खेत में माहौल बिल्कुल शांत रहता था वहां पर सिर्फ पक्षियों के चहचहाने की आवाज आती थी.
जब बारिश का मौसम आता था तब मैं और मेरे दोस्त बारिश में भीगने चले जाते थे और गांव में जब बारिश के कारण छोटे छोटे तालाब पानी के घर जाते थे तो हम उनमें जोर-जोर से कूदते थे. यह करने में बहुत मजा आता था बारिश में भीगने के कारण कभी-कभी हमें सर्दी जुकाम भी हो जाती थी लेकिन बचपन में मन बड़ा चंचल था.
जिस कारण हम बार-बार बारिश में देखने चले जाते थे. हमारे परिवार में मेरे दादा-दादी जी मेरे माता-पिता और एक छोटी बहन है. मेरे दादाजी रोज शाम को हमें नई नई कहानियां सुनाते थे हम भी तारों की छांव में कहानियां सुनते रहते थे और कब नींद आ जाती थी पता ही नहीं चलता था. बचपन के वह पल मुझे बहुत याद आते है.
बचपन में मुझे खेलने के साथ साथ शिक्षाप्रद पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ना बहुत पसंद था जो कि मुझे आज भी पसंद है. मैं बचपन में जितना चंचल था उतना ही पढ़ाई में होशियार भी था जिस कारण हमारे विद्यालय में मैं हर बार अव्वल नंबरों से पास होता था.
विद्यालय में मैं कई बार शैतानियां भी करता था जिसके कारण मुझे दंड दिया जाता था. जो कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था.
मुझे आज भी याद है जब पिताजी मुझे गांव के मेले में अपने कंधे पर बिठा कर ले जाते थे. उनके पास पैसों की कमी होती थी लेकिन वे मुझे मेले में खूब घुमाते और झूला झुलाते थे साथ ही जब मैं मेले में खिलौने लेने की जिद करता तो मुझे खिलौने भी दिलाते थे.
पिताजी कंधे पर बैठकर मेला देखना बहुत ही आनंददायक होता था वो दिन मैं आज भी याद करता हूं तो आंखों में आंसू आ जाते है. मेरे पिताजी बहुत सहनशील और ईमानदार व्यक्ति है और साथ ही वे मुझे बहुत प्यार करते है. मैं भी पिताजी से उतना ही प्रेम करता हूं.
बचपन में मैं और मेरी छोटी बहन बहुत झगड़ते थे हर एक छोटे से खिलौने को लेकर हमें लड़ाई हो जाती थी. लेकिन बचपन में हमें पता नहीं होता क्या सही है और क्या नहीं. बहन के साथ वह नोक-झोक भरी लड़ाइयां बहुत याद आती है.
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बचपन होता इतना अच्छा है कि सभी को बड़े होने के बाद बचपन की बहुत याद आती है. हमारे गांव में जब सावन का महीना आता है तब हर घर में पेड़ों पर झूले डाल दिए जाते है. हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ था जिस पर मेरे पिताजी हमारे जुड़ने के लिए झूला डालते देते थे.
झूला झूलना मुझे और मेरी छोटी बहन को बहुत पसंद था इसलिए हम सुबह उठते हैं जिले की सड़क पर नहीं दौड़ते थे हम दोनों में इस कारण बहुत नोक-झोंक भी होती थी लेकिन माँ आकर सब कुछ ठीक कर देती थी.
बचपन में मैं और मेरे दोस्त गर्मियों की छुट्टियों में बागों में बैर तोड़ने चले जाते थे खट्टे मीठे बेर हमें बहुत पसंद थे जिस कारण हम अपने आप को रोक नहीं पाते थे बागों के माली लकड़ी लेकर हमें मारने को दौड़ते लेकिन हम तेजी से दौड़ कर घर में छुप जाते थे.
हमारे घर के बाहर एक बड़ा चौक था जहां पर गांव के सभी बड़े बुजुर्ग शाम को बैठते थे और गांव और देश की चर्चा करते थे. हम भी वहां पर खेलते रहते थे कभी-कभी हमें बुजुर्गों से शिक्षाप्रद कहानियां सुनने को भी मिलती थी.
चौक में हर साल कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता था जिसमें एक छोटी मटकी को माखन से भरकर ऊपर लटका दिया जाता था फिर हम बच्चे और हमारे से बड़े लोग मिलकर छोटी मटकी को फोड़ते थे. यह उत्सव इतना अच्छा होता था कि हम पूरी रात गाना गाते और नाचते रहते थे कृष्ण जन्मोत्सव के दिन मुझे आज भी मेरा बचपन याद आ जाता है.
बचपन में हमारे घर में गाय, भैंस और बकरियां होती थी जिनकी छोटे बच्चों के साथ हम बहुत खेलते थे. हमारे घर में एक शेरू नाम का कुत्ता भी था जिसे हम बहुत प्यार करते थे वह भी हमारा को ख्याल रखता था 1 दिन की बात है हम खेलते-खेलते गांव से बाहर निकल गए थे और घर जाने का रास्ता भूल गए थे तब शेरू नहीं हमें रास्ता दिखाया और घर तक पहुंचाया था.
वह दिन मुझे आज भी बहुत याद आता है क्योंकि मैं रास्ता भूल जाने के कारण बहुत रोने लगा था.
मेरा बचपन बहुत ही अच्छा रहा है बचपन में मैंने खूब मस्तियां की है जिनकी मीठी यादें आज भी मेरे मस्तिक में बची हुई है आज शहर की इस गुमनाम जिंदगी में भी रस तब घुल आता है जब मैं छोटे बच्चों को खेलते हैं और शैतानियां करते देखता हूं.
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