Hindi, asked by singhaabha, 8 months ago

bachpan ki madhur smritiya par anuched lekhan

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Answered by abhays7002
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बचपन में जब कोई डांटता था तो मां के आंचल में जाकर छुप जाते थे. बचपन में मां की लोरियां सुनकर नींद आ जाती थी लेकिन अब वह सुकून भरी नींद नसीब नहीं होती है. बचपन के वो सुनहरे दिन जब हम खेलते रहते थे तो पता ही नहीं चलता कब दिन होता और कब रात हो जाती थी.

बचपन में किसी के बाग में जाकर फल और बैर तोड़ जाते थे तब वहां का माली पीछे भागता था वह दिन किसको याद नहीं आते. शायद इसीलिए बचपन जीवन का सबसे अनमोल पल है.

मेरा बचपन सपनों का घर था जहां मैं रोज दादा-दादी के कहानी सुनकर उन कहानियों में ऐसे खो जाता था मानो उन कहानियों का असली पात्र में ही हूं. बचपन के वह दोस्त जिनके साथ रोज सुबह-शाम खेलते, गांव की गलियों के चक्कर काटते और खेतों में जाकर पंछी उड़ाते.

मेरा बचपन गांव में ही बीता है इसलिए मुझे बचपन की और भी ज्यादा याद आती है बचपन में हम भैंस के ऊपर बैठकर खेत चले जाते थे तो बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते थे. बचपन में सावन का महीना आने पर हम पेड़ पर झूला डाल कर झूला झूलते थे और ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते थे.

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बचपन के वह दिन बहुत ही खुशियों से भरे हुए थे तब ना तो किसी की चिंता थी ना ही किसी से कोई मतलब बस अपने में ही खोए रहते थे. बचपन में बिना बुलाए किसी की भी शादी में शामिल हो जाते थे और खूब आनंद से खाना खाते और मौज उड़ाते थे.

बचपन में शोर मचा कर पूरे विद्यालय में हंगामा करते थे. हम बचपन में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा, छुपन- छुपाई और तेज दौड़ लगाना खेलते थे. रोज किसी ना किसी को परेशान करके भागना बहुत अच्छा लगता था.

बचपन में हम सब सुबह शाम सिर्फ मस्ती ही करते थे. बचपन में पूरा घर हंसी ठिठोली से गूंजता रहता था. बचपन का हर दिन उत्सव होता था. बच्चों को देख कर बचपन की बहुत सी यादें अब भी ताजा हो जाती है. अभी तेज दौड़ लगाने का मन करता है और बारिश भी तालाब में जाकर छप-छप करना किसे अच्छा नहीं लगता.

ऐसा था मेरा बचपन कभी मां का दुलार मिलता तो कभी पिताजी की डांट पड़ती थी लेकिन फिर भी कुछ ही पलों में सब कुछ भुला कर फिर से शैतानियां करने लग जाते थे.

मेरे बचपन के दिन बहुत ही अच्छे और सुहावने थे यह दिन किसी जन्नत से कम नहीं थे. इन दिनों में मैंने बहुत मस्तियां और शैतानियां की थी. बचपन के वो दिन भूलाए नहीं भूले जा सकते है. मेरा बचपन हमारे गांव में ही बीता है. मेरे पिताजी किसान है.

मैं बचपन में बहुत शरारती और चंचल था जिसके कारण मुझे कभी कभी डांट भी पड़ती थी तो उतना ही प्यार और दुलार भी मिलता था. मैं बचपन में माँ से छुपकर माखन खा जाता था माँ कुछ समय के लिए तो गुस्सा होती लेकिन मेरी चंचलता के कारण मुझे माफ भी कर देती थी.

मैं बचपन में सुबह उठते ही अपने दोस्तों के साथ खेलने निकल जाता था हम दोपहर तक खूब खेल खेलते थे इससे हमारे कपड़े मिट्टी के भर जाते थे और हम इतने गंदे हो जाते थे कि हमारी शक्ल पहचान में नहीं आती थी यह दिन बहुत ही अच्छे थे.

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मैं बचपन में कबड्डी, गुल्ली डंडा, खो खो, पोस्म पा, दौड़-भाग, लंगड़ी टांग आदि प्रकार के खेल खेलता था. इन खेलों को खेलते समय कब सुबह से शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था मां मुझे हमेशा डांटती थी कि तू भोजन तो समय पर कर लिया कर, लेकिन बचपन था ही ऐसा की खेल खेलते समय भूख लगती ही नहीं थी.

कभी-कभी मैं पिताजी के साथ खेत में भी जाया करता था जहां पर पिताजी मुझे फसलों के बारे में और वहां पर रहने वाले पशु पक्षियों के बारे में बताते थे. खेत में माहौल बिल्कुल शांत रहता था वहां पर सिर्फ पक्षियों के चहचहाने की आवाज आती थी.

जब बारिश का मौसम आता था तब मैं और मेरे दोस्त बारिश में भीगने चले जाते थे और गांव में जब बारिश के कारण छोटे छोटे तालाब पानी के घर जाते थे तो हम उनमें जोर-जोर से कूदते थे. यह करने में बहुत मजा आता था बारिश में भीगने के कारण कभी-कभी हमें सर्दी जुकाम भी हो जाती थी लेकिन बचपन में मन बड़ा चंचल था.

जिस कारण हम बार-बार बारिश में देखने चले जाते थे. हमारे परिवार में मेरे दादा-दादी जी मेरे माता-पिता और एक छोटी बहन है. मेरे दादाजी रोज शाम को हमें नई नई कहानियां सुनाते थे हम भी तारों की छांव में कहानियां सुनते रहते थे और कब नींद आ जाती थी पता ही नहीं चलता था. बचपन के वह पल मुझे बहुत याद आते है.

बचपन में मुझे खेलने के साथ साथ शिक्षाप्रद पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ना बहुत पसंद था जो कि मुझे आज भी पसंद है. मैं बचपन में जितना चंचल था उतना ही पढ़ाई में होशियार भी था जिस कारण हमारे विद्यालय में मैं हर बार अव्वल नंबरों से पास होता था.

विद्यालय में मैं कई बार शैतानियां भी करता था जिसके कारण मुझे दंड दिया जाता था. जो कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था.

मुझे आज भी याद है जब पिताजी मुझे गांव के मेले में अपने कंधे पर बिठा कर ले जाते थे. उनके पास पैसों की कमी होती थी लेकिन वे मुझे मेले में खूब घुमाते और झूला झुलाते थे साथ ही जब मैं मेले में खिलौने लेने की जिद करता तो मुझे खिलौने भी दिलाते थे.

पिताजी कंधे पर बैठकर मेला देखना बहुत ही आनंददायक होता था वो दिन मैं आज भी याद करता हूं तो आंखों में आंसू आ जाते है. मेरे पिताजी बहुत सहनशील और ईमानदार व्यक्ति है और साथ ही वे मुझे बहुत प्यार करते है. मैं भी पिताजी से उतना ही प्रेम करता हूं.

बचपन में मैं और मेरी छोटी बहन बहुत झगड़ते थे हर एक छोटे से खिलौने को लेकर हमें लड़ाई हो जाती थी. लेकिन बचपन में हमें पता नहीं होता क्या सही है और क्या नहीं. बहन के साथ वह नोक-झोक भरी लड़ाइयां बहुत याद आती है.

Answered by cherrycherry30
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Answer:

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Explanation:

बचपन के दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन के बड़े महत्वपूर्ण दिन होते हैं । बचपन में सभी व्यक्ति चिंतामुक्त जीवन जीते हैं । खेलने उछलने-कूदने, खाने-पीने में बड़ा आनंद आता है ।

माता-पिता, दादा-दादी तथा अन्य बड़े लोगों का प्यार और दुलार बड़ा अच्छा लगता हैं । हमउम्र बच्चों के साथ खेलना-कूदना परिवार के लोगों के साथ घूमना-फिरना बस ये ही प्रमुख काम होते हैं । सचमुच बचपन के दिन बड़े प्यारे और मनोरंजक होते हैं ।

मुझे अपने बाल्यकाल की बहुत-सी बातें याद हैं । इनमें से कुछ यादें प्रिय तो कुछ अप्रिय हैं । मेरे बचपन का अधिकतर समय गाँव में बीता है । गाँव की पाठशाला में बस एक ही शिक्षक थे । वे पाठशीघ्र ही मेरे मित्र ने मुझे सहारा देकर जल से बाहर खींचा । इस तरह मैं बाल-बाल बचा । इस घटना का प्रभाव यह पड़ा कि इसके बाद मैं कभी भी तालाब में नहाने नहीं गया । यही कारण है कि अब तक मुझे तैरना नहीं आता है ।

बचपन की एक अन्य घटना मुझे अभी तक याद है । उन दिनों मेरी चौथी कक्षा की वार्षिक परीक्षा चल रही थी । हिंदी की परीक्षा में हाथी पर निबंध लिखने का प्रश्न आया था । निबंध लिखने के क्रम में मैंने ‘चल-चल मेरे हाथी’ वाली फिल्मी गीत की चार पंक्तियाँ लिख दीं ।

इसकी चर्चा पूरे विद्यालय में हुई । शिक्षकगण तथा माता-पिता सभी ने हँसते हुए मेरी प्रशंसा की । परंतु उस समय मेरी समझ में नहीं आया कि मैंने क्या अच्छा या बुरा किया । इस तरह बचपन की कई यादें ऐसी हैं जो भुलाए नहीं भूल सकतीं । इन मधुर स्मृतियों के कारण ही फिर से पाँच-सात वर्ष का बालक बनने की इच्छा होती है । परंतु बचपन में किसी को पता ही कहाँ चलता है कि ये उसके जीवन के सबसे सुनहरे दिन हैं । याद न होने पर बच्चों को कई तरह से दंड देते थे ।..

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