Bachpan par aadharit chhoti si Kavita
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सबसे सुनहरा पल है बचपन
बीते कल का सुकून है बचपन।
बैर, द्वेष से कोसो दूर
कोई चिंता की न थी होड़
केवल खेल-खिलोने थे भाते,
दोस्तो संग खुब समय थे बिताते।
वो बचपन के खेल खूब याद आते।
वो छुपन-छुपाई, वो नदी-पहाड़
कभी गिल्ली-डंडा तो कभी पिट्ठू
या याद आती कभी पतंग की बाज़ी।
कट जाती थी जब पतंग दौड़
आज भी मन को खूब ललचाती।
वो राजा, मंत्री, चोर, सिपाही, वो कैरम की गोटी,
वो भँवरे का घूमना या घोड़ा-बादाम छाई कर भागना।
हाय ये बचपन के खेल मे
मैं अब भी हूँ डुब जाती।
डूबने से याद आया फिर पानी
कागज की कश्ती और नानी की कहानी।
काश समय फिर लौट आ जाए
काश हम फिर बच्चे बन जाए।
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