bachpan par nibandh
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बचपन जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है. बचपन में इतनी चंचलता और मिठास भरी होती है कि हर कोई फिर से बचपन को जीना चाहता है. बचपन में वह धीरे-धीरे चलना, गिर पड़ना और फिर से उठकर दौड़ लगाना बहुत याद आता है.
बचपन में पिताजी के कंधे पर बैठकर मेला देखने का जो मजा होता था वह अब नहीं आता है. बचपन में मिट्टी में खेलना और मिट्टी से छोटे-छोटे खिलौने बनाना किसकी यादों में नहीं बसा है.बचपन में जब कोई डांटता था तो मां के आंचल में जाकर छुप जाते थे. बचपन में मां की लोरियां सुनकर नींद आ जाती थी लेकिन अब वह सुकून भरी नींद नसीब नहीं होती है. बचपन के वो सुनहरे दिन जब हम खेलते रहते थे तो पता ही नहीं चलता कब दिन होता और कब रात हो जाती थी.
बचपन में किसी के बाग में जाकर फल और बैर तोड़ जाते थे तब वहां का माली पीछे भागता था वह दिन किसको याद नहीं आते. शायद इसीलिए बचपन जीवन का सबसे अनमोल पल है.बचपन में शोर मचा कर पूरे विद्यालय में हंगामा करते थे. हम बचपन में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा, छुपन- छुपाई और तेज दौड़ लगाना खेलते थे. रोज किसी ना किसी को परेशान करके भागना बहुत अच्छा लगता था.
बचपन में हम सब सुबह शाम सिर्फ मस्ती ही करते थे. बचपन में पूरा घर हंसी ठिठोली से गूंजता रहता था. बचपन का हर दिन उत्सव होता था. बच्चों को देख कर बचपन की बहुत सी यादें अब भी ताजा हो जाती है. अभी तेज दौड़ लगाने का मन करता है और बारिश भी तालाब में जाकर छप-छप करना किसे अच्छा नहीं लगता.
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