Badalne ki chamta ki buddimta ki headings
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कार्लोस (बदला हुआ नाम) के शरीर में एक छोटा यांत्रिक पंप (दूसरा दिल) लगाया गया था ताकि उसके दिल की कमज़ोर हो चुकी मांसपेशियों का बोझ कम किया जा सके.
कार्लोस को अपने पेट पर एक हल्की 'टक्कर' महसूस होती थी जो उनके दूसरे दिल की धड़कन थी.
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ऐसा लगता था कि मशीन की थाप ने उनकी नब्ज की जगह ले ली हो. जब नाभि के ऊपर मशीन धड़कती तो कार्लोस को ऐसा लगता कि उनके दिल को पेट के निचले हिस्सा में गिरा दिया गया है.
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जब न्यूरोसाइंटिस्ट अगस्टिन इबानेज़ कार्लोस से मिले तो उन्हें और भी अजीब प्रभावों - मन-मस्तिष्क पर असर की आशंका हुई.
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इबानेज़ का मानना था कि दिल के बदलने के साथ ही डॉक्टरों ने उनके मरीज का दिमाग़ भी बदल डाला है. हृदय प्रत्यारोपण के बाद कार्लोस अब अलग तरह से सोचता और महसूस करता है.
कैसे? हम अक्सर कहते हैं - 'दिल की सुनें.' वैज्ञानिकों ने हाल ही में शोध से पता लगाया है कि ये बात ख़ासी सच हो सकती है.
इसी सच्चाई को एक बार परखने का मौका इबानेज़ को मिला कार्लोस के दिल से.
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दार्शनिक अरस्तू का मानना था कि दिमाग़ का मुख्य काम दिल के जुनून या उफान को ठंडा करना है. वे यह भी मानते थे कि दिल में आत्मा वास करती है.
इन्हीं कारणों से प्राचीन मिस्र में शव को एम्बाल्म करते समय यह सुनिश्चित किया जाता था कि मौत के बाद दिल सीने में ही रहे, जबकि सिर के भीतर के हिस्सों को हटा लिया जाता था.
दिल की सच्चाई
तो क्या वाकई दिल की बात सच होती है या महज़ अटकल ही है. एक अध्ययन में लोगों से बिन दिल पर हाथ रखे, दिल की धड़कन महसूस करने को कहा गया.
केवल एक चौथाई लोगों ने 80 प्रतिशत तक सही जवाब दिया. जबकि एक चौथाई लोगों का जवाब तो 50 प्रतिशत तक गलत था.
फिर वैज्ञानिकों ने उन्हें एक पहेली सुलझाने को दी.
लोगों को ताश की गड्डी में से कोई चार पत्ते चुनने को कहा गया. फिर उन्हें मेज़ पर रखी ताश की चार अन्य गड्डियों से किसी एक से मिलाने को कहा गया. अपने पत्ते चयन की गई गड्डी से मिला लेने वाले के लिए इनाम तय किया गया.
पाया गया कि जो लोग अपने दिल की धड़कन करीब से महसूस करते थे, उन्होंने ज़्यादातर सही गड्डी का चयन किया.
जिनका अपने दिल की धड़कन महसूस करने का आभास कमज़ोर था, उन्होंने रैंडम तरीके से पत्तों को चुना.
गेम उन लोगों ने ज़्यादा बार जीती जो अपने 'दिल की बात सुन रहे' थे.
क्या असर?