Badalte parivesh aur Hamare Samajik mulya par 150 words K essay
Answers
नैतिक शिक्षा मनुष्य के जीवन में बहुत आवश्यक है। इसका आंरभ मनुष्य के बाल्यकाल से ही हो जाता है। सब पर दया करना, कभी झूठ नहीं बोलना, बड़ों का आदर करना, दुर्बलों को तंग न करना, चोरी न करना, हत्या जैसा कार्य न करना, सच बोलना, सबको अपने समान समझते हुए उनसे प्रेम करना, सबकी मदद करना, किसी की बुराई न करना आदि कार्य नैतिक शिक्षा या नैतिक मूल्य कहलाते हैं। सभी धर्म ग्रंथों का उद्देश्य रहा है कि मनुष्य के अंदर नैतिक गुणों का विकास करना ताकि वह मानवता और स्वयं को सही रास्ते में ले जा सके।
एक बच्चे को बहुत पहले ही घरवालों द्वारा नैतिक मूल्यों से अवगत करा दिया जाता है। जैसे-जैसे उसकी शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है। घरवाले उसे विद्यालय में दाखिला करवा देते हैं। वहाँ जाकर उसका एक नए संसार से परिचय होता है। यदि शिक्षा में नैतिक मूल्यों को महत्व दिया जाता है, तो विद्यार्थी सही मायने में मनुष्य बन सकता है।ये मूल्य उसे सिखाते हैं कि उसे समाज में, बड़ों के साथ, अपने मित्रों के साथ व अन्य लोगों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए। किताबों में वर्णित कहानियों और महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से उसके मूल्यों को संवारा व निखारा जा सकता है।
विद्यालय यदि इन मूल्यों पर जोर देता है, तो बच्चों का व्यक्तित्व को संवारने का काम करते हैं। लोग ऐसे विद्यार्थियों का आदर करते हैं और विद्यालय का भी नाम होता है।। जिस तरह से आधुनिकता जोर पकड़ रही है। बच्चों में क्रोध, हिंसा, अंशांति इत्यादि भावनाएँ बढ़ रही हैं। बच्चों के अंदर नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। यदि एक देश का विद्यार्थी नैतिक मूल्यों से रहित होगा, तो उस देश का कभी विकास नहीं हो सकता। लेकिन विडंबना है कि यह नैतिक मूल्य हमारे जीवन से धूंधले होते जा रहे हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली से नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है।
विद्यालय इस पर विशेष ध्यान नहीं देते। मात्र चाटों पर लगाकर स्कूल दीवारों पर लगाकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं।अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए हम किसी भी हद तक गिर जाते हैं। ये इस बात का संकेत है कि समाज कि स्थिति कितनी हद तक गिर चुकी है। चोरी, डकैती, हत्याएँ, धोखा-धड़ी, जालसाज़ी, बेईमानी, झूठ, दूसरों और बड़ों का अनादर, गंदी आदतें नैतिक मूल्यों में आई कमी का परिणाम है। हमें चाहिए नैतिक शिक्षा के मूल्य को पहचाने और इसे अपने जीवन में विशेष स्थान दे।
बदलता परिवेश और हमारे सामाजिक मूल्य
बदलाव प्रकृति का नियम है। बदलाव के बिना जीवन की तरक्की संभव नहीं है। परिवर्तन से ही उन्नति का मार्ग खुलता है। आज के दौर में हमारे परिवेश में जो परिवर्तन हो रहे हैं, उससे समाज प्रभावित हुआ है।
1.बदलते परिवेश ने मनुष्य की आर्थिक स्तर में सुधार किया है और उसके रहन सहन, खानपान के स्तर को बढ़ाया है
2. बदलते परिवेश में बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लिए आज की युवा पीढ़ी आत्मनिर्भरता के सारे प्रयास कर रही है।
3. बदलते परिवेश में सुख साधनों की मात्रा में लगातार बढ़ोतरी होने से मानव जीवन सरल होता जा रहा है। इस बदलाव ने हमारी सभ्यता संस्कृति को प्रभावित किया है आज पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव हमारी संस्कृति पर पड़ता रहा है।
4. बदलते परिवेश ने संयुक्त परिवार की प्रथा को खत्म कर एकाकी परिवार को जन्म दिया है। 7. बदलते परिवेश के कारण लोगों में जागरूकता उत्पन्न हो गई है जिसे अंधविश्वास पर कई सामाजिक कुरीतियों का अंत हुआ है।
5. बदलते परिवेश में हमारे समाज को पूर्ण रूप से प्रभावित किया है यदि इसके नकारात्मक प्रभाव थोड़ा सुधार किया जाए तो यह बदलाव संस्कृति और समाज के लिए बहुत हितकारी होगा।
सामाजिक मूल्य
सामाजिक मूल्यों के बिना न तो समाज की प्रगति की कल्पना की जा सकती है और न ही भविष्य में प्रगतिशील क्रियाओं का निर्धारण ही सम्भव है। मूल्यों के आधार पर ही हमें यह पता चलता है कि समाज में किस चीज को अच्छा अथवा बुरा समझा जाता है। अत: सामाजिक मूल्य मूल्यांकन का भी प्रमुख आधार हैं। विभिन्न समाजों की आवश्यकताएँ तथा आदर्श भिन्न-भिन्न होते हैं, अत: सामाजिक मूल्यों के मापदण्ड भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
किसी भी समाज में सामाजिक मूल्य उन उद्देश्यों, सिद्धान्तों अथवा विचारों को कहते हैं जिनको समाज के अधिकांश सदस्य अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक समझते हैं और जिनकी रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को तत्पर रहते हैं। मातृभूमि, राश्ट्रगान, धर्मनिरपेक्षता, प्रजातन्त्र इत्यादि हमारे सामाजिक मूल्यों को ही व्यक्त करते हैं।