Bade bhai sahab path se aadharit samay sarni banaye
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सालाना परीक्षा में बड़े भाई फिर फेल हो गए और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आये। उन दोनों के बीच अब दो कक्षा की दूरी रह गयी। लेखक के मन में आया की वह भाई साहब को आड़े हाथों लें परन्तु उन्हें दुःखी देखकर लेखक ने इस विचार को त्याग दिया और खेल-कूद में फिर व्यस्त हो गए। अब बड़े भाई का लेखक पर ज्यादा दबाव ना था।
एक दिन लेखक भोर का सारा समय खेल में बिताकर लौटे तब भाई साहब ने उन्हें जमकर डाँटा और कहा कि अगर कक्षा में अव्वल आने पर घमंड हो गया है तो यह जान लो की बड़े-बड़े आदमी का भी घमंड नही टिक पाया, तुम्हारी क्या हस्ती है? अनेको उदाहरण देकर उन्होंने लेखक को चेताया। बड़े भाई ने कक्षा की अलजबरा, जामेट्री और इतिहास पर अपनी टिप्पणी की और बताया की यह सब विषय बड़े कठिन हैं। निबंध लेखन को उन्होंने समय की बर्बादी बताया और कहा की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। स्कूल का समय निकट था नही तो लेखक को और बहुत कुछ सुनना पड़ता। उस दिन लेखक को भोजन निःस्वाद सा लगा। इतना सुनने के बाद भी लेखक की अरुचि पढाई में बनी रही और खेल-कूद में वो शामिल होते रहे।
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फिर सालाना परीक्षा में बड़े भाई फेल हो गए और लेखक पास। बड़े भाई ने अत्याधिक परिश्रम किया था और लेखक ने ज्यादा नहीं। लेखक को अपने बड़े भाई पर दया आ रही थी। जब नतीजा सुनाया गया तो वह रो पड़े और उनके साथ लेखक भी रोने लगे। पास होने की ख़ुशी आधी हो गयी। अब उनके बीच केवल एक दर्जे का अंतर रह गया। लेखक को लगा यह उनके उपदेशों का ही असर है की वे दनादन पास हो जाते हैं। अब भाई साहब नरम पड़ गए। अब उन्होंने लेखक को डाँटना बंद कर दिया। अब लेखक में मन में यह धारणा बन गयी की वह पढ़े या ना पढ़े वे पास हो जायेंगे।
एक दिन संध्या समय लेखक होस्टल से दूर कनकौआ लूटने के लिए दौड़े जा रहे थे तभी उनकी मुठभेड़ बड़े भाई से हो गयी। वे लेखक का हाथ पकड़ लिया और गुस्सा होकर बोले कि तुम आठवीं कक्षा में भी आकर ये काम कर रहे हो। एक ज़माने में आठवीं पास कर नायाब तहसीलदार हो जाते थे, कई लीडर और समाचारपत्रों संपादक भी आठवीं पास हैं परन्तु तुम इसे महत्व नही देते हो। उन्होंने लेखक को तजुरबे का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा कि भले ही तुम मेरे से कक्षा में कितने भी आगे निकल जाओ फिर भी मेरा तजुरबा तुमसे ज्यादा रहेगा और तुम्हें समझाने का अधिकार भी। उन्होंने लेखक को अम्माँ दादा का उदाहरण देते हुए कहा की भले ही हम बहुत पढ़-लिख जाएँ परन्तु उनके तजुरबे की बराबरी नही कर सकते। वे बिमारी से लेकर घर के काम-काज तक में हमारे से ज्यादा अनुभव रखते हैं। इन बातों को सुनकर लेखक उनके आगे नत-मस्तक हो गए और उन्हें अपनी लघुता का अनुभव हुआ। इतने में ही एक कनकौआ उनलोगों के ऊपर से गुजरा। चूँकि बड़े भाई लम्बे थे इसलिए उन्होंने पतंग की डोर पकड़ ली और होस्टल की तरफ दौड़ कर भागे। लेखक उनके पीछे-पीछे भागे जा रहे थे।
लेखक परिचय
प्रेमचंद
इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गाँव में हुआ। इनका मूल नाम धनपत राय था परन्तु इन्होनें उर्दू में नबाव राय और हिंदी में प्रेमचंद नाम से काम किया। निजी व्यवहार और पत्राचार ये धनपत राय से ही करते थे। आजीविका के लिए स्कूल मास्टरी, इंस्पेक्टरी, मैनेजरी करने के अलावा इन्होनें 'हंस' 'माधुरी' जैसी प्रमुख पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। ये अपने जीवन काल में ही कथा सम्राट और उपन्यास सम्राट कहे जाने लगे थे।
प्रमुख कार्य
उपन्यास - गोदान, गबन, प्रेमाश्रम, सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, और मंगलसूत्र(अपूर्ण)।
कठिन शब्दों के अर्थ
• तालीम - शिक्षा
• पुख्ता - मजबूत
• तम्बीह - डाँट-डपट
• सामंजस्य - तालमेल
• मसलन - उदाहरणतः
• इबारत - लेख
• चेष्टा - कोशिश
• जमात - कक्षा
• हर्फ़ - अक्षर
• मिहनत (मेहनत) - परिश्रम
• लताड़ - डाँट-डपट
• सूक्ति-बाण - तीखी बातें
• स्कीम - योजना
• अमल करना - पालन करना
• अवहेलना - तिरस्कार
• नसीहत - सलाह
• फजीहत - अपमान
• इम्तिहान - परीक्षा
• लज्जास्पद - शर्मनाक
• शरीक - शामिल
• आतंक - भय
• अव्वल - प्रथम
• आधिपत्य - प्रभुत्व
• स्वाधीन - स्वतंत्र
• महीप - राजा
• मुमतहीन - परीक्षक
• प्रयोजन - उद्देश्य
• खुराफात - व्यर्थ की बातें
• हिमाकत - बेवकूफी
• किफ़ायत - बचत
• टास्क - कार्य
• जलील - अपमानित
• प्राणांतक - प्राण का अंत करने वाला
• कांतिहीन - चेहरे पे चमक ना होना
• सहिष्णुता - सहनशीलता
• कनकौआ - पतंग
• अदब - इज्जत
• जहीन - प्रतिभावान
• तजुरबा - अनुभव
• बदहवास - बेहाल
• मुहताज (मोहताज) -दूसरे पर आश्रित