Badri ki chamta vridhi Mata ka mann Hai 500 word mein
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रचनावली
स्वामी सहजानन्द सरस्वती रचनावली
खंड 1
सहजानन्द सरस्वती
संपादन - राघव शरण शर्मा
अनुक्रम ब्रह्मर्षि वंश विस्तर पीछे
श्रुति, स्मृति, इतिहास और पुराण आदि सिद्ध अयाचक और याचक द्विविध ब्राह्मण प्रदर्शनपूर्वक, उनके धर्म, आचार-व्यवहार एवं पदवियों आदि की विवेचना, अयाचक ब्राह्मणों के साथ याचक ब्राह्मणों के विवाह सम्बन्ध आदि का प्रदर्शन, आधुनिक इतिहास, व्यवस्थापत्र आदि प्रमाण निरूपण और विविध आक्षेप निराकरण आदि अति प्रयोजनीय विषयों की सविस्तर मीमांसा।
श्री मत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्री 108 स्वामीसहजानन्दसरस्वती, द्वारा लोकोपराकार्थ विरचित
आदावन्ते च यन्नास्ति वर्त्तमानेपि तत्तथा।
वितथै: सदृशा: सन्तोवितथा इव लक्षिता:॥
नाम परिवर्तन
आज से 8-10 वर्ष पहले कुछ भूमिहार ब्राह्मणों ने, जिनसे हमारा विशेष परिचय था, हमसे यह अनुरोध किया कि हम लोगों के इतिहास से सम्बन्ध रखनेवाला कोई ग्रन्थ आप लिख दें तो बड़ा उपकार हो। हम इस बात से सहमत हो गए। प्रथम कोई विशेष विचार न था, इसलिए तय पाया कि उस ग्रन्थ का नाम भूमिहार ब्राह्मण परिचय रखा जावे। हमारा विचार था कि कोई छोटी-मोटी पुस्तक लिख दी जावेगी। पर, जब हमने सामग्री एकत्र करना और लिखना आरंभ किया तो ब्राह्मण मात्र के इतिहास और धर्म पर प्रकाश डालने और विचार करने को हम बाध्य हो गए। इसके लिए बीच में और भी कारण आ गए। फलत: ग्रन्थ विस्तृत हो गया या और उसमें सभी ब्राह्मणों का विचार भी आ गया। फिर भी पूर्वनिश्चय और संकल्प के अनुसार वही रखा गया। परंतु हमें इस बात का दु:ख उसी समय हुआ और वह अन्त तक बना रहा कि व्यापक विषय की पुस्तक लिख कर उसका संकुचित नाम रखना अच्छा न हुआ और वह दु:ख तभी से बराबर बना रहा। इतना निश्चय तो हमने उसी समय कर लिया था कि दूसरी आवृत्ति में इसका नामक अवश्यमेव बदल देना होगा। तदनुसार कुछ और भी इतिहास-सामग्री और धार्मिक विषय मध्य में संगृहीत हुए और पूर्व पुस्तक में उनका भी समावेश कर के प्रस्तुत पुस्तक तैयार की गई है और नाम भी उसी के अनुसार ब्रह्मर्षि वंश विस्तर रखा गया है, जो इस ग्रन्थ के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। त्यागियों और गौड़ों के सम्बन्ध आदि का विशेष रूप से इस बार समावेश किया गया है। यद्यपि बहुत यत्न करने पर भी सरस्वतों और महियालों के सम्बन्ध की विशेष बातें इस बार न दी जा सकीं। तथापि आशा हैं तीसरे संस्करण में यह कमी भी पूरी हो जावेगी। इस व्यापक नाम से प्रचार भी विशेष होगा, जो पहली बार इसी कारण नहीं हो सका और यही हमारा लक्ष्य हैं।
- सहजानन्द सरस्वती
स्वामी सहजानन्द सरस्वती-जीवन-वृत्त एवं कृतित्व
1889 ई. - महाशिवरात्रि के दिन गाजीपुर जिले के देवाग्राम में जन्म।
1892 ई. - माता का देहांत।
1898 ई. - जलालाबाद मदरसा में अक्षरारंभ।
1901 ई. - लोअर तथा अपर प्राइमरी की 6 वर्ष की शिक्षा 3 वर्षों में समाप्त।
1904:-ई. - मिडिल परीक्षा में संपूर्ण उत्तर प्रदेश में छठा स्थान प्राप्त कर छात्रवृत्ति प्राप्ति।
1905 - विवाह (वैराग्य से बचाने के लिए)
1906 - पत्नी का स्वर्गवास।
1907 - पुन: विवाह की बात जान कर महाशिवरात्रि को घर से निष्क्रमण तथा काशी पहुँच कर दसनामी संन्यासी स्वामी अच्युतानन्द से प्रथम दीक्षा प्राप्त कर संन्यासी बने।
1908 - प्राय: वर्षपर्यंत गुरु की खोज में भारत के तीर्थों का भ्रमण।
1909 - पुन: काशी पहुँच कर दशाश्वमेध घाट स्थित श्री दंडी स्वामी अद्वैतानन्द सरस्वती से दीक्षा ग्रहण कर दंड प्राप्त किया और दंडी स्वामी सहजानन्द सरस्वती बने।
1910 - से 1912 तक - काशी तथा दरभंगा में संस्कृत साहित्य व्याकरण, न्याय तथा मीमांसा का गहन अध्यायन।
1913 - स्वामी पूर्णानन्द सरस्वती के प्रयास से 28 दिसंबर को बलिया में हथुआ-नरेश की अध्यक्षता में संपन्न अ. भा. भूमिहार ब्राह्मण महासभा में प्रथम बार उपस्थित तथा ब्राह्मण समाज की स्थिति पर भाषण।
1914 - काशी से 'भूमिहार ब्राह्मण पत्र' निकाल कर 1916 तक उसका संपादन तथा प्रकाशन।
1914-15 - भारत के विभिन्न भागों में भ्रमण कर भूमिहार ब्राह्मणों तथा अन्य ब्राह्मणों का विवरण एकत्र करना।
1916 - 'भूमिहार ब्राह्मण परिचय' का प्रकाशन। [काशी के अतिरिक्त विश्वंभरपुर (गाजीपुर) में अधिकांश समय निवास।]
1917 - प्रथम बार भोजपुर के डुमरी में आगमन