Bahaduri se sambandhit Koi Kahani likhiye
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कहानी : सोना गिलहरी की बहादुरी
इस बीच गिलहरी भी मन ही मन योजना बना चुकी थी कि उसे सांप का मुकाबला किस प्रकार करना है। सांप को आगे बढ़ता देख कर वह तत्परता के साथ सांप की पूंछ की ओर दौड़ी।
सोना गिलहरी अपने बिल से बाहर निकली। रोज की आदत के अनुसार उसने बाहर आते ही अपने दोनों कान बिल्कुल सीधे-खड़े कर लिए। ऐसा करके वह काफी दूर से आ रही किसी भी बारीक से बारीक आवाज को सुन लेती थी। इससे वह अनुमान लगा लेती कि कोई खतरनाक जीव उसके बिल की तरफ तो नहीं आ रहा। वह बिल के मुहाने से लगभग एक फुट की दूरी पर थी। वह ठीक उस प्रकार बैठी हुई थी जिस प्रकार कोई बच्चा पालथी मार कर बैठा हो। पूंछ पीछे जमीन पर चिपकी हुई थी और अगले पांव छाती के साथ सटे हुए।
उस समय वह अपनी नजर दूर सामने की ओर टिकाए हुए थी। उसके एंटिना जैसे कानों ने बिल की ओर आती हुई एक बारीक-सी सरसराहट को पकड़ लिया था। सरसराहट नजदीक से नजदीक आती जा रही थी। सोना जानती थी कि ऐसी सरसराहट किसी सांप की ही हो सकती है। इसीलिए वह सामने की ओर आंखें गड़ाए हुए थी।
सोना एक मैदानी गिलहरी थी। इसीलिए वह जमीन में बिल बनाकर रहती थी। हालांकि पेड़ों पर चढ़ना, दौड़ भागना और वहां से भोजन इकट्ठा करना उसकी दैनिक क्रियाओं में शामिल था। उसका बिल एक पेड़ के समीप, ठीक उसकी जड़ों के साथ बना हुआ था। बिल भीतर जाकर कई शाखाओं में बंट जाता था। उन सभी शाखाओं की कुल लंबाई लगभग साठ मीटर थी। ऐसा उसने सांप जैसे खतरनाक शत्रुओं से बचने के लिए किया हुआ था। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे भी थे जो अब बिल के भीतर विश्राम कर रहे थे।
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नीटू था तो छोटा-सा बालक पर बहुत ही निडर और साहसी। उसे जासूसी तथा बहादुरी की कहानियाँ पढ़ने में बहुत मजा आता। रात को सोते समय भी कहानियों में पढ़ी रोमांचकारी वारदातें पुलिस की भागदौड़ और जासूस झटपट लाल के सनसनीखेज कारनामें उसके दिमाग में धमाचौकड़ी मचाए रहते।
व सोचता कि यदि वह भी कोई जासूस होता तो देश में जगह-जगह फैले तरह-तरह के अपराधियों की हालत खराब कर देता। वह कोई-न-कोई बहादुरी का काम करके बहादुरी का इनाम जीतना चाहता था। जब वह अपने मित्रों के बीच बैठकर ऐसी बातें करता तो सब उसकी हँसी उड़ाते और ‘क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा’ कहकर उसे छेड़ते।
नीटू अपने मां-बाप के साथ एक छोटे से कस्बे में रहता था। यहां चोरियाँ बहुत हुआ करती थीं। सभी लोगों के मन में चोर-लुटेरों का डर बुरी तरह समाया हुआ था। नीटू के पिता जी ने अपने जानमाल की हिफाजत के लिए लाइसेंस बनवा कर एक पिस्तौल भी खरीद ली थी।
एक दिन नीटू ने अपने पिता जी से कहा। कि वह भी पिस्तौल चलाना सीखना चाहता है। तब उसके पिताजी ने उसको समझाया कि अभी वह बहुत छोटा है कुछ सालों बाद स्वयं ही उसे पिस्तौल चलाना सिखा देंगे। पर उसके हठ को देखकर उन्होंने उसे पिस्तौल चलाने के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी दे दी। साथ ही यह भी कहा कि असली पिस्तौल चलाने की अभी उसकी उम्र नहीं है इसलिए वह उसे खिलौने वाली पिस्तौल ला देंगे। जिससे वह निशाना साधने का अभ्यास कर सकता है।