Baiddh aur Jain darn kae sampradayo ke aandolano ko darn sudhar aandolano kyo Kaha jata hai ?
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क्षत्रिय-कुल में उत्पन्न जैन धर्म के संस्थापक महावीर तथा बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। इन दोनों के द्वारा ब्राह्मणों के प्रभुत्व का विरोध किया गया है। जैन-धर्म के संस्थापक एवं जितेन्द्रिय तथा ज्ञान-प्राप्त महात्माओं की उपाधि तीर्थंकर है।
बौद्ध एवं जैन-धर्म के उदय का वास्तविक कारण उत्तर-पूर्वी भारत में प्रकट हुर्इ, नर्इ कृषि अर्थव्यवस्था में निहित था।
कारीगरों तथा व्यापारियों द्वारा र्इसा पूर्व 5वीं सदी में पंचमार्क, अथवा आहत सिक्कों का प्रयोग होता था।
जैन परम्परा के अनुसार इस धर्म के 24 तीर्थकर हुए हैं- 1. ऋषभदेव या आदिनाथ अजितनाथ 3. सम्भव 4. अभिनन्दन 5. सुमीत 6. पद्यमप्रभ 7. सुपाश्र्व 8. चन्द्रप्रभ 9. पुष्पदत्त 10. शीतल 11. श्रेयांस 12. वासुपूज्य 13. विमल 14. अनन्त 15. धर्म 16. शान्ति 17. कुन्थु 18. अरह 19. मल्लि 20. मुनिसुव्रत 21. नेमि 22. अरिष्ट नेमि 23. पाश्र्वनाथ 24. महावीर
23 वें तीर्थकार पाश्र्वनाथ काशी के एक राजा अश्वसेन् के पुत्र थे। उनका काल महावीर स्वामी से पूर्व /माना जाता है। 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग कर सन्यासी हो गये। 83 दिन की घोर तपस्या के बाद उनको ज्ञान प्राप्त हुआ। जैन अनुश्रुति के अनुसार 70 वर्ष तक पाश्र्वनाथ ने धर्म का प्रचार किये। इनके अनुयायियों को निग्रन्थ कहा जाता था। पाश्र्वनाथ जातिप्रथा, वैदिक कर्मकाण्ड, देववाद के कटु आलोचक थे, महावीर स्वामी के माता-पिता भी इनके अनुयायी थे।
वैश्यों द्वारा महावीर तथा गौतम बुद्ध को उदारतापूर्वक दान दिया गया।
जैन परम्परा में प्रथम तीर्थकर है ऋषभदेव।
पाश्र्वनाथ के अनुयायियों को ‘न्रिग्रंथ’ कहा जाता है।
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