bal Krishna bhatt ka jeevan parchaya in Hindi.
Answers
సీన్ పంచతంత్రం
Explanation:
ఓన్లీ సీన్స్ panchatantra book
Answer:
जन्म – 3 जून 1844
जन्म स्थान – इलाहाबाद (उ०प्र०)
पिता – पं० वेणी प्रसाद
मृत्यु – 20 जुलाई 1914
यह गोल-गोल प्रकाश का पिंड देख
भांति-भांति की कल्पनाएँ मन में उदय होती
क्या यह निशा अभिसारिका के मुख देखने की आरसी है
यह रजनी रमणी के ललाट पर टुक्के का सफेद तिलक है ,हिन्दी साहित्य के एक सफल पत्रकार, नाटककार एवं निबंधकार के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले बाल कृष्ण भट्ट का जन्म इलाहाबाद में 3 जून 1844 को हुआ था ! भट्ट जी की माता इनके पिता जी से अधिक शिक्षित एवं विदुषी थी अत: बाल्यकाल से ही भट्ट जी पर इनकी माता के ज्ञान का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा जिस कारण भट्ट जी भी तीव्र बुद्धि के बालक के रूप में बड़े हुए ! इनकी प्रारभिक शिक्षा मिशन स्कुल में हुयी, मिशन स्कुल के प्रधानाचार्य एक पादरी थे और उनसे एक बार इनका वाद-विवाद हो जाता है जिसकी वजह से इन्होनें मिशन स्कुल जाना बंद कर दिया और घर पर ही अध्ययन करने लगे और यहीं पर संस्कृत विषय का अध्ययन करने लगे, संस्कृत विषय के अतिरिक्त भट्ट जी ने हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी भाषाओँ का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया, ये एकदम स्वतंत्र प्रवृत्ति के व्यक्ति थे जो कि अपना हर कार्य स्वतंत्र होकर करना पसंद करते थे, ये अपने सिद्धांतों एवं जीवन –मूल्यों के इतने दृढ प्रतिपादन थे कि जिस कारण से इन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं से अवगत होना पड़ा, अपनी इन्हीं सैद्धांतिक मूल्यों के कारण भट्ट जी ने मिशन स्कुल और कायस्थ पाठशाला से संस्कृत विषय के अध्यापक के पद से त्याग देना पड़ा, त्याग पत्र देने के उपरान्त भट्ट जी ने व्यापार में लग गए, किन्तु व्यापारिक न होने के कारण इनका मन व्यापार में नहीं लगता था अत: कुछ समय के उपरान्त इन्होनें व्यापार से त्याग दे दिया और साहित्य की सेवा में लग गये ! हिन्दी साहित्य के प्रचार के लिये इन्होनें संवत् 1933 में प्रयाग में हिन्दीवर्धनी नामक सभा की स्थापना की और यहीं से एक हिन्दी मासिक पत्र का प्रकाशन किया जिसका नाम “हिन्दी प्रदीप” रखा, बत्तीस वर्षो तक भट्ट जी ने इनका संपादन किया और भली भांति इसे चलाते रहे, ये भारतेन्दु युग के प्रतिष्ठित निबंधकार थे निबंध की दुनिया में इनका नाम सर्वोपरि है, इनके द्वारा रचित निबंध मौलिक और भावना पूर्ण होते थे, जिसमें ये मानवीय संवेदनाओं को बहुत ही सरतला पूर्वक पिरोये हुए है, इनकी व्यस्तता इतनी अधिक थी कि कुछ कहा नहीं जा सकता किन्तु अपनी तमाम व्यस्तताओं के होने के बावजुद ये कई प्रकार के साहित्य का यह प्रसिद्ध रचनाकार 20 जुलाई 1914 को परलोक वासी हो गया !
साहित्यिक परिचय
भट्ट जी की रचनाओं में शुद्ध हिन्दी का प्रयोग हुआ है, जिसकी भाषा प्रवाहमयी संयत और भावानुकूल है , इनकी इस शैली में उपमा, रूपक उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ, रचना में अलंकारों के प्रयोग से भाषा में विशेष सौन्दर्य आ गया ! भावों और विचारों के साथ कल्पना का भी सुन्दर समन्वय हुआ है, भट्ट जी की रचना बहुत ही सहज एवं सरल है !