bal shram ek apradh ke upar speech
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इस अधिनियम में संशोधन के द्वारा गैर-जोखिम भरे कार्यों में भी 14 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों को लगाने पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया गया है| इससे पूर्व 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों से सिर्फ जोखिम भरे व्यवसायों में कार्य कराने पर ही प्रतिबंध था| संशोधित अधिनियम के अनुसार, 14 से 18 वर्ष की आयु वालों को किशोर की श्रेणी में रखा गया और जोखिम वाले उद्योग धंधों में काम करने वालों की न्यूनतम आयु 14 से बढ़ाकर 18 कर दी गई है| इसमें बालश्रम का संघये अपराध कानून के उल्लंघन करने पर अधिकतम सजा 1 वर्ष से बढ़ाकर 2 वर्ष, साथ ही साथ जुर्माने की रकम 20000 से बढ़ाकर 50000 कर दी गई है| बावजूद इन सबके हमारे देश में बाल श्रमिकों की संख्या आज भी करोड़ों में है|
भारतवर्ष से बालश्रम को पूर्णत: समाप्त करने का संकल्प लेने वाले वर्ष 2014 के नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी के शब्दों में “इससे बड़ी त्रासदी और भला क्या होगी कि देश में आज भी 17 करोड़ बाल श्रमिक और लगभग 20 करोड़ वयस्क बेरोजगार हैं| ये वयस्क कोई और नहीं, बल्कि बाल श्रमिकों की माता पिता ही है| वास्तव में, यह विरोधाभास बालश्रम के खत्म होने से ही समाप्त हो पाएगा|” बालश्रम को बच्चों के विरूद्ध हिंसा मानने वाले श्री कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि सामूहिक कार्यों, राजनीतिक इच्छाशक्ति, पर्याप्त संसाधन और वंचित बच्चों के प्रति पर्याप्त सहानुभूति से बालश्रम समाप्त किया जा सकता है| इन्होंने बालश्रम मिटाने हेतु लोगों का आव्हान करते हुए यह नारा भी दिया “सहानुभूति का वैश्वीकरण, सूचना का लोकतांत्रिकरण और अधिकारों का सर्वव्यापीकरण|”
Essay on Child Labour in Hindi
बाल श्रम पर निबंध – Essay on Child Labour in Hindi
वास्तव में, हम यह सोचते हैं कि इस तरह की समाज की कुरीतियों को समाप्त करने का दायित्व सिर्फ सरकार का है| सब कुछ कानूनों के पालन एवं कानून भंग करने वालों को सजा देने से सुधारा जाएगा, लेकिन यह असंभव है| हमारे घरों में, ढाबों में, होटलों में अनेक श्रमिक मिल जाएंगे जो, कड़ाके की ठंड या तपती धूप की परवाह किए बगैर काम करते हैं| सभ्य होते समाज में या अभिशाप आज भी क्यों बरकरार है? क्यों तथाकथित सभ्य एवं सुशिक्षित परिवारों में नौकरों के रूप में छोटे बच्चों को पसंद किया जाता है| हमें इन सब प्रश्नों के उत्तर स्वयं से पूछने होंगे|
हमें इन बच्चों से बालश्रम न करवाकर इन्हें प्यार देना होगा, जिनके लिए विलियम वर्ड्सवर्थ ने कहा था “द चाइल्ड इस द फादर ऑफ द मैन” अर्थात बच्चा ही व्यक्ति का पिता है| हमें भी निंदा फाजली की तरह ईश्वर की पूजा समझकर बच्चों के दुख को दूर करना होगा| आज हम 21वीं सदी में विकास और उन्नति की ऐसी व्यवस्था में जी रहे हैं, जहां समानता, धर्मनिरपेक्षता, मान्यता आदि की चर्चा बहुत जोर-शोर से की जा रही है|