balgobin bhagat kaise adami the?
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Hey frnd ✌✋☺बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोर-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे।
बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु, हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता।
कपड़े बिलकुल कम पहनते। कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों की-सी कनफटी टोपी।
जब जाड़ा आता, एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते।
मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीका की तरह, शुरू होता।
गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते।
ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बाालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक साफ़-सुथरा मकान भी था।
किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ’साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते।
इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता! -कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन, उनकी सब चीज़ साहब की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते- जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में भेंट रूप रख लिया जाकर प्रसाद रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज़र चलात |
_____________________________________☺☺☺☺☺☺✌✋✌✌
बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु, हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता।
कपड़े बिलकुल कम पहनते। कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों की-सी कनफटी टोपी।
जब जाड़ा आता, एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते।
मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीका की तरह, शुरू होता।
गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते।
ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बाालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक साफ़-सुथरा मकान भी था।
किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ’साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते।
इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता! -कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन, उनकी सब चीज़ साहब की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते- जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में भेंट रूप रख लिया जाकर प्रसाद रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज़र चलात |
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Explanation:I think this is helpful for you ❤️ give me thank you please
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