Balidaan kahani ke permukh paatr ki charitk vesheshtay
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Solution :-
1) सेवा-भावना से युक्त-गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान है। अपने पिता के बीमार होने पर वह उनकी हर प्रकार से तीमारदारी करता है। कभी नीम के सींके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदापूरना की जड़। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान थी।
1) सेवा-भावना से युक्त-गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान है। अपने पिता के बीमार होने पर वह उनकी हर प्रकार से तीमारदारी करता है। कभी नीम के सींके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदापूरना की जड़। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान थी।(2) आर्थिक अभाव से ग्रस्त—गिरधारी ने समस्त जमा पूँजी से अपने पिता की विधिवत अन्त्येष्टि की थी, इस कारण से उसके सामने पर्याप्त आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। वह कई लोगों का कर्जदार हो गया और गाँव के लोग उससे कटने लगे।
1) सेवा-भावना से युक्त-गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान है। अपने पिता के बीमार होने पर वह उनकी हर प्रकार से तीमारदारी करता है। कभी नीम के सींके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदापूरना की जड़। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान थी।(2) आर्थिक अभाव से ग्रस्त—गिरधारी ने समस्त जमा पूँजी से अपने पिता की विधिवत अन्त्येष्टि की थी, इस कारण से उसके सामने पर्याप्त आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। वह कई लोगों का कर्जदार हो गया और गाँव के लोग उससे कटने लगे।(3) परिश्रमी और सत्यवादी-बलिदान’ कहानी का प्रमुख पात्र गिरधारी परिश्रमी और सत्यवादी है। उसके परिश्रमी होने का गुणं लेखक के इस कथन से स्पष्ट होता है, “खेत गिरधारी के जीवन के अंश हो गये थे। उनकी एक-एक अंगुल भूमि उसके रक्त से रँगी हुई थी। उनका एक-एक परमाणु उसके पसीने से तर हो गया था।” सत्यवादिता का गुण उसकी इस बात से स्पष्ट झलकता है कि जब वह ओंकारनाथ के पास जाता है तो कहता है-“सरकार मेरे घर में तो इस समय रोटियों का भी ठिकाना नहीं है। इतने रुपये कहाँ से लाऊँगा?’
1) सेवा-भावना से युक्त-गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान है। अपने पिता के बीमार होने पर वह उनकी हर प्रकार से तीमारदारी करता है। कभी नीम के सींके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदापूरना की जड़। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान थी।(2) आर्थिक अभाव से ग्रस्त—गिरधारी ने समस्त जमा पूँजी से अपने पिता की विधिवत अन्त्येष्टि की थी, इस कारण से उसके सामने पर्याप्त आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। वह कई लोगों का कर्जदार हो गया और गाँव के लोग उससे कटने लगे।(3) परिश्रमी और सत्यवादी-बलिदान’ कहानी का प्रमुख पात्र गिरधारी परिश्रमी और सत्यवादी है। उसके परिश्रमी होने का गुणं लेखक के इस कथन से स्पष्ट होता है, “खेत गिरधारी के जीवन के अंश हो गये थे। उनकी एक-एक अंगुल भूमि उसके रक्त से रँगी हुई थी। उनका एक-एक परमाणु उसके पसीने से तर हो गया था।” सत्यवादिता का गुण उसकी इस बात से स्पष्ट झलकता है कि जब वह ओंकारनाथ के पास जाता है तो कहता है-“सरकार मेरे घर में तो इस समय रोटियों का भी ठिकाना नहीं है। इतने रुपये कहाँ से लाऊँगा?’(4) भाग्यवादी-गिरधारी अपने पिता की अन्त्येष्टि में अपनी सारी जमा पूँजी व्यय कर देता है। इससे उसके सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। वह दो समय की रोटी के लिए भी परेशान हो जाता है। जब उसके पड़ोसी उससे कहते हैं कि तुमने अन्त्येष्टि में व्यर्थ पैसा खर्च किया, इतना पैसा खर्च नहीं करना चाहिए था तो वह कहता है-‘मेरे भाग्य में जो लिखा है, वह होगा।”
1) सेवा-भावना से युक्त-गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान है। अपने पिता के बीमार होने पर वह उनकी हर प्रकार से तीमारदारी करता है। कभी नीम के सींके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदापूरना की जड़। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान थी।(2) आर्थिक अभाव से ग्रस्त—गिरधारी ने समस्त जमा पूँजी से अपने पिता की विधिवत अन्त्येष्टि की थी, इस कारण से उसके सामने पर्याप्त आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। वह कई लोगों का कर्जदार हो गया और गाँव के लोग उससे कटने लगे।(3) परिश्रमी और सत्यवादी-बलिदान’ कहानी का प्रमुख पात्र गिरधारी परिश्रमी और सत्यवादी है। उसके परिश्रमी होने का गुणं लेखक के इस कथन से स्पष्ट होता है, “खेत गिरधारी के जीवन के अंश हो गये थे। उनकी एक-एक अंगुल भूमि उसके रक्त से रँगी हुई थी। उनका एक-एक परमाणु उसके पसीने से तर हो गया था।” सत्यवादिता का गुण उसकी इस बात से स्पष्ट झलकता है कि जब वह ओंकारनाथ के पास जाता है तो कहता है-“सरकार मेरे घर में तो इस समय रोटियों का भी ठिकाना नहीं है। इतने रुपये कहाँ से लाऊँगा?’(4) भाग्यवादी-गिरधारी अपने पिता की अन्त्येष्टि में अपनी सारी जमा पूँजी व्यय कर देता है। इससे उसके सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। वह दो समय की रोटी के लिए भी परेशान हो जाता है। जब उसके पड़ोसी उससे कहते हैं कि तुमने अन्त्येष्टि में व्यर्थ पैसा खर्च किया, इतना पैसा खर्च नहीं करना चाहिए था तो वह कहता है-‘मेरे भाग्य में जो लिखा है, वह होगा।”(5) अन्तर्द्वन्द्व का शिकार-गिरधारी खेत को अपनी माँ समझता है। उससे उसका अमिट लगाव है। उसके जाने का उसे बड़ा दु:ख होता है। जब उसके हाथ से उसकी जमीन खिसक जाती है, तो वह अन्तर्द्वन्द्व का शिकार होकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। वह यह नहीं सोच पाती कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं ? इसी मानसिक स्थिति में वह अपने बैल भी बेच देता है। हालात से परेशान होकर वह रज्जू बढ़ई के पास जाता है और कहता है, ”रज्जू, मेरे हल भी बिगड़े हुए हैं, चलो बना दो।”