Band pathshala ki atmakatha
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बंद पाठशाला की आत्मकथा
मैं पाठशाल हूँ | मुझे सब बच्चे, छात्र तरह-तरह के नामों से बुलाते है| मुझे विद्या का मंदिर कहते है| आज मुझे कहने में दुःख हो रहा है , मुझे सबने आज के समय में एक बंद कमरा बना दिया है| मेरे पास कोई नहीं आता| सभी कमरों में ताले मार दिए है| कोई यहाँ नहीं आता है| मैं बिलकुल अकेली पड़ गई हूँ|
मैं अपने छात्रों और शिक्षकों को देखने के लिए तरस गई हूँ| मुझे सबकी बहुत याद आती है| सुबह की प्रार्थना , बच्चों का शोर , आधी छुट्टी के समय में खेलना एक साल होने वाला यह सुनने का मन करता है| आज के समय में एक खाली बंद कमरा बन गई हूँ| जहाँ कोई न आता जाता है| आज के समय में यह मेरी आत्मकथा बन गई है|
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