Bap bada na bhaiya Sabse Bada Rupaiya to 150 words essay
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बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया
ऐसा नहीं है कि संसार में रुपया ही सबसे बड़ा है, रुपये से बढ़ कर एक से एक मूल्यवान वस्तुएँ हैं जैसे कि विद्या, शिक्षा, ज्ञान, योग्यता आदि, किन्तु कठिनाई यह है कि, आज के जमाने में, वे वस्तुएँ भी केवल रुपये अदा करके प्राप्त की जा सकती हैं। आज के जमाने में हर चीज बिकाऊ हैं, पानी तक तो बिकने लगा है फिर शिक्षा और चिकित्सा की बात ही क्या है।यदि आपके पास रुपया नहीं है तो क्या आप अपने औलाद को, उच्च शिक्षा तो दूर, साधारण शिक्षा ही दिलवा सकते हैं? हमारे समय तो लोग के.जी., पी.पी. आदि क्याहोता है नहीं जानते थे और न ही म्युनिसिपालटी के स्कूलों अलावा अन्य खर्चीले प्रायवेट स्कूल हुआ करते थे। पिताजी हमें म्युनिसिपालटी के स्कूल मेंले गये थे जहाँ हमें अपने सीधे हाथ को सिर पर से घुमा कर उलटे कान को छूने के लिये कहा गया (ऐसा माना जाता था कि छः वर्ष की उम्र हो जाने पर हाथों की लंबाई इतनी हो जाती है कि हाथ को सिर पर से घुमाते हुये दूसरी ओर के कान को छूआ जा सकता है, छः वर्ष से कम उम्र में नहीं) और हम भर्ती हो गये थे पहली कक्षा में। कपड़े की एक थैली में एक बाल-भारतीपुस्तिका और स्लेट पेंसिल, यही था हमारा बस्ता। आजयदि आप किसी तरह से अपने बच्चे को किसी स्कूल में भर्ती करा भी लें तो उसके बस्ते का खर्च उठाते उठाते ही बेदम हो जायेंगे और बच्चा उसका बोझ उठातेउठाते।उन दिनों प्रायमरी स्कूल में पढ़ने के लिये कोई फीसनहीं पटानी पड़ती थी। मिडिल स्कूल के लिये चार या छः आना और हाई स्कूल के लिये भी आठ आना जैसा मामूलीसा फीस पटाना होता था। चिकित्सा के लिये बड़े बड़े अस्पताल न हो कर गिनी-चुनी डिस्पेंसरियाँ ही थीं किन्तु उनके मालिक डॉक्टर की फीस नियत नहीं थी, जहाँ पैसे वालों से अधिक फीस ले लेते थे वहीं गरीबों का मुफ्त इलाज भी कर दिया करते थे। आज आप गरीब हैं या अमीर, इससे डॉक्टर को कोई फर्क नहीं पड़ता। उनकी नियत फीस आपको देना ही होगा।सोचता हूँ कि पचास सालों में जमाना कहां से कहाँ पहुँच गया। सब कुछ बदल चुका है। अधिक वय के लोगों को अतीत की यादें बहुत प्रिय होती हैं। मैं भी उनमें से एक हूँ इसीलिये आज मेरे विचार भी अतीत में भटकने लग गये थे।पुराने लोगों को सदैव ही अतीत अच्छा और वर्तमान बहुत बुरा प्रतीत होते रहा है और नये लोगों को पुराने लोग पुराने लोग दकियानूस। खैर यह मानव प्रकृति है। किन्तु कम से कम शिक्षा और चिकित्सा को तो बिकने से रोकना ही होगा, इन पर सभी का समान अधिकार होना चाहिये चाहे वह अमीर हो या गरीब।
(Source:Net)
ऐसा नहीं है कि संसार में रुपया ही सबसे बड़ा है, रुपये से बढ़ कर एक से एक मूल्यवान वस्तुएँ हैं जैसे कि विद्या, शिक्षा, ज्ञान, योग्यता आदि, किन्तु कठिनाई यह है कि, आज के जमाने में, वे वस्तुएँ भी केवल रुपये अदा करके प्राप्त की जा सकती हैं। आज के जमाने में हर चीज बिकाऊ हैं, पानी तक तो बिकने लगा है फिर शिक्षा और चिकित्सा की बात ही क्या है।यदि आपके पास रुपया नहीं है तो क्या आप अपने औलाद को, उच्च शिक्षा तो दूर, साधारण शिक्षा ही दिलवा सकते हैं? हमारे समय तो लोग के.जी., पी.पी. आदि क्याहोता है नहीं जानते थे और न ही म्युनिसिपालटी के स्कूलों अलावा अन्य खर्चीले प्रायवेट स्कूल हुआ करते थे। पिताजी हमें म्युनिसिपालटी के स्कूल मेंले गये थे जहाँ हमें अपने सीधे हाथ को सिर पर से घुमा कर उलटे कान को छूने के लिये कहा गया (ऐसा माना जाता था कि छः वर्ष की उम्र हो जाने पर हाथों की लंबाई इतनी हो जाती है कि हाथ को सिर पर से घुमाते हुये दूसरी ओर के कान को छूआ जा सकता है, छः वर्ष से कम उम्र में नहीं) और हम भर्ती हो गये थे पहली कक्षा में। कपड़े की एक थैली में एक बाल-भारतीपुस्तिका और स्लेट पेंसिल, यही था हमारा बस्ता। आजयदि आप किसी तरह से अपने बच्चे को किसी स्कूल में भर्ती करा भी लें तो उसके बस्ते का खर्च उठाते उठाते ही बेदम हो जायेंगे और बच्चा उसका बोझ उठातेउठाते।उन दिनों प्रायमरी स्कूल में पढ़ने के लिये कोई फीसनहीं पटानी पड़ती थी। मिडिल स्कूल के लिये चार या छः आना और हाई स्कूल के लिये भी आठ आना जैसा मामूलीसा फीस पटाना होता था। चिकित्सा के लिये बड़े बड़े अस्पताल न हो कर गिनी-चुनी डिस्पेंसरियाँ ही थीं किन्तु उनके मालिक डॉक्टर की फीस नियत नहीं थी, जहाँ पैसे वालों से अधिक फीस ले लेते थे वहीं गरीबों का मुफ्त इलाज भी कर दिया करते थे। आज आप गरीब हैं या अमीर, इससे डॉक्टर को कोई फर्क नहीं पड़ता। उनकी नियत फीस आपको देना ही होगा।सोचता हूँ कि पचास सालों में जमाना कहां से कहाँ पहुँच गया। सब कुछ बदल चुका है। अधिक वय के लोगों को अतीत की यादें बहुत प्रिय होती हैं। मैं भी उनमें से एक हूँ इसीलिये आज मेरे विचार भी अतीत में भटकने लग गये थे।पुराने लोगों को सदैव ही अतीत अच्छा और वर्तमान बहुत बुरा प्रतीत होते रहा है और नये लोगों को पुराने लोग पुराने लोग दकियानूस। खैर यह मानव प्रकृति है। किन्तु कम से कम शिक्षा और चिकित्सा को तो बिकने से रोकना ही होगा, इन पर सभी का समान अधिकार होना चाहिये चाहे वह अमीर हो या गरीब।
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बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रूपया
यह एक सही कहावत है
आज के समय मैं रूपया की सबसे बड़ी कीमत है , अपनों को छोड़ के रुपया सबसे बड़ा है।
धन है भी अत्यन्त महत्वपूर्ण।
आज कल सब जगह सबसे आगे रुपया काम आता है, स्कूल मै दाखिला करवाना हो, अस्पताल मै इलाज करवाना हो सब जगह रुपया काम आता है।
अपनों की कोई अहमियत नही रह गई है, आज कल सब रुपयों की भाषा बोलते है।
रूपया- पैसा आ जाते ही रहन सहन के तौर तरीके, बात करने का ढंग, पहनने का सलीका आदि सब कुछ परिवर्तित हो जाता है। रिश्तेदार आगे पीछे चक्कर काटने लगते हैं।
जब पैसा नहीं होता तो कोई बात नहीं करता।
आज के टाइम से रूपया- पैसा के आ जाने से रिश्ते और अपनों से प्यार सब ख़त्म हो जाता है।
समय बदला रहा और मानव भी बदल रहा है। अब मनुष्य दादा, चाचा, मामा, भैया वगैरह इन सब सम्बन्धों से ऊपर धन को ही मानने लगा।
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