Barsaat ka pahela din full essay
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आज सुबह से गर्मी थी| ज्यों-ज्यों सूरज आसमान में चढ़ने लगा, त्यों-त्यों बेचैनी बढ़ने लगी| हवा बन्द और धुप तेज| किसी को चैन नहीं| सब के मुँह से "ऊफ" निकालने लगे| धुप देखते ही आँखें चौधियाँ जाती| इस भीषण गर्मी और उष्णता को देखकर अनुभवी लोग कहने लगे, आज वर्षा होगी, गर्मी चरम सीमा पर पहुँच गई है| किसी काम में जी नहीं लगता, परेशानी बन गई है, नींद हराम हो गई है|
अनुभवियों की बात सच निकली| दिन ढलते ही पश्चिमी आकाश में कुछ घटाएँ दिखाई पड़ी| छिटपुट बादल आकाश घेरने लगे| वे गहराते हुए, काली घटा का रूप धारण कर ऊपर चढ़ने लगे| बिजली चमकने लगी| हवा तेज हो गई| पर शीतलता के कारण बड़ी प्यारी लगती | सूखे और मुरझाए शरीर में नवजीवन भरने लगी| मेंढ़क अपनी टर्र-टर्र ध्वनि में वर्षा रानी का स्वागत-गान गाने लगे|
कुछ ही देर में बादलों से सारा आसमान ढक गया| बूँदे पड़ने लगी| पहले तो बूँद पड़ने से कुछ धुल उड़ी पर उनके तेज होने पर हवा चलने लगी|हवा की तेजी ने बौछारों का रूप धारण कर लिया| जो लोग गर्मी से व्याकुल हो बाहर निकल कर वर्षा का दृश्य देखने चले थे, कदम बढ़ाकर घरों को लौटने लगे| किन्तु बच्चों की टोली आनंद से खुले आकाश के नीचे उछल-कूद मचाने लगे| बच्चों को बहुत दिनों के बाद पानी मिला था और वे जी भर कर नहा रहें थे| वर्षा में भीगने का आनंद ही कुछ और होता है|
कुछ ही समय में प्रकृति ने अपना रंग बदल दिया| पेड़ों के मटमैले पत्ते निखरकर हरे-भरे होकर लहराने लगे| फुल भी धुल जाने से नया रूप धारण कर उमंग से झुमने लगे| माटी की सोंधी गंद साँस के साथ खींचकर ह्रदय में जगह बनाने लगी| अहा ! इस वर्षा के पहले दिन ने संसार की काया ही पलट दी|
वर्षा के इस पहले दिन का आनंद पशु-पक्षी भी ले रहें हैं| चरागाहों से भीगी बकरियाँ और सिर नीची किए भेड़े मन में ही प्रसन्न होकर लौट रही हैं| गाय-बैल वर्षा में आनंदित हो उठे हैं| भैसे तो पानी से अलग नहीं होना चाहती उनकी झुलसी हुई मोटी खाल जब तक तर नहीं हो जाएगी, तब तक वे टस से मस नहीं होंगी|
वर्षा खूब तेज हो गई| नालियों में पानी भर गया| दिन डूबने के पहले ताल-तलैया भर गये| उनमें बच्चे कागज की नाव दौड़ाने लगें| नाव चलाने की होड़ और बच्चों की दौड़ बूढों के मन में रस का संचार करने लगी| उनका बचपन आज उभर कर सामने आ गया है, पर बढ़पन्न के बन्धन में बंधे रहने से वे ऐसा आनंद नहीं ले पा रहे हैं|
वर्षा के अभाव और गर्मी के प्रभाव से संसार में जो व्याकुलता छाई थीं, वह वर्षा के पहले दिन ही दूर हो गई| जहाँ क्षण भर के लिए चैन नहीं मिल रहा था, वहाँ अब चैन की बंसी बज रही थी|
वर्षा के पहले दिन ने जहाँ धरती को हरा-भरा कर दिया, सब का मन उल्लास और उत्साह से भर दिया, वहाँ दीन-दुखियों की मुसीबत की सुचना | उनकी टूटी-फूटी झोपड़ियाँ टप-टप कर चू कर देने लगी| बेचारे रुखा-सूखा खाकर जहाँ पेट की आग कठिनाई से बुझा पाते थे, वहाँ झोपड़ियाँ सँवारने, भीगने से बचने की नई चिन्ता सवार हो गई|
इस प्रकार वर्षा का पहला दिन आनंद और पीड़ा का सन्देश वाहक बनकर हमारे सामने उपस्थित हुआ है| यह आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि विधाता की सारी रचना रंगबिरंगी है|