bas ki yatra ka pratipadya
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बस के हिस्सेदार को बस की बुरी हालत के बारे में अच्छी तरह से मालूम था। उसे ये पता था कि बस कहीं भी धोखा दे सकती थी। खासकर यदि ब्रेक ने धोखा दे दिया तो जान जाने का भी डर था। फिर भी वह हिस्सेदार अपनी बस में जाने की हिम्मत कर रहा था। इसलिए लेखक के मन में हिस्सेदार के लिए श्रद्धा जग गयी।
प्रश्न 2: लोगों ने ऐसी सलाह क्यों दी कि समझदार आदमी उस शाम वाली बस से सफर नहीं करते?
उत्तर: शाम हो या सुबह कोई भी आदमी खस्ताहाल बस मे तब तक सफर नहीं करेगा जब तक कोई बहुत आपात की स्थिति न हो, या उस रास्ते पर जाने के लिए कोई अन्य साधन नहीं हो। इसलिए लोगों ने उस शाम वाली बस में जाने से मना कर दिया था।
प्रश्न 3: लोगों को ऐसा क्यों लगा जैसे सारी बस इंजन हो और वे लोग उस इंजन में बैठे हुए हों?
उत्तर: बस के सारे पेंच ढ़ीले हो गए थे। इसलिये इंजन चलने से पूरी ही बस इंजन की तरह शोर मचा रही थी और काँप भी रही थी। शोर शराबे और बुरी तरह हिलने डुलने से ऐसा लग रहा था कि वे लोग बस में नहीं बल्कि इंजन में ही बैठे हों।
प्रश्न 4: लेखक को बस के अपने आप चलने की योग्यता के बारे में जानकर आश्चर्य क्यों हुआ?
उत्तर: अक्सर सुदूर गाँवों के इलाके में पुरानी और जर्जर बसें ही चला करती हैं। उन्हें देखकर किसी बड़े शहर के निवासी को भरोसा ही नहीं होगा कि वे चल भी सकती हैं। इसलिए लेखक को भी ये जानकर अचम्भा हुआ कि बस अपने आप चल पड़ती है और उसे धक्का लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।
प्रश्न 5: लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?
उत्तर: प्राय: राजमार्गों की यात्रा करते समय लोग अगल बगल की हरियाली को निहारने में मग्न होते हैं। गाँवों की नैसर्गिक सुंदरता देखते ही बनती है। लेकिन बस की दुर्दशा ने लेखक या उसके दोस्तों पर तो भय का प्रभाव छोड़ दिया था। इसलिए लेखक को ऐसा लग रहा था कि कभी भी कोई भी पेड़ आकर उनसे टकरा सकता है। इसलिए पेड़ लेखक को दुश्मन की भांति दिख रहे थे।
प्रश्न 2: लोगों ने ऐसी सलाह क्यों दी कि समझदार आदमी उस शाम वाली बस से सफर नहीं करते?
उत्तर: शाम हो या सुबह कोई भी आदमी खस्ताहाल बस मे तब तक सफर नहीं करेगा जब तक कोई बहुत आपात की स्थिति न हो, या उस रास्ते पर जाने के लिए कोई अन्य साधन नहीं हो। इसलिए लोगों ने उस शाम वाली बस में जाने से मना कर दिया था।
प्रश्न 3: लोगों को ऐसा क्यों लगा जैसे सारी बस इंजन हो और वे लोग उस इंजन में बैठे हुए हों?
उत्तर: बस के सारे पेंच ढ़ीले हो गए थे। इसलिये इंजन चलने से पूरी ही बस इंजन की तरह शोर मचा रही थी और काँप भी रही थी। शोर शराबे और बुरी तरह हिलने डुलने से ऐसा लग रहा था कि वे लोग बस में नहीं बल्कि इंजन में ही बैठे हों।
प्रश्न 4: लेखक को बस के अपने आप चलने की योग्यता के बारे में जानकर आश्चर्य क्यों हुआ?
उत्तर: अक्सर सुदूर गाँवों के इलाके में पुरानी और जर्जर बसें ही चला करती हैं। उन्हें देखकर किसी बड़े शहर के निवासी को भरोसा ही नहीं होगा कि वे चल भी सकती हैं। इसलिए लेखक को भी ये जानकर अचम्भा हुआ कि बस अपने आप चल पड़ती है और उसे धक्का लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।
प्रश्न 5: लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?
उत्तर: प्राय: राजमार्गों की यात्रा करते समय लोग अगल बगल की हरियाली को निहारने में मग्न होते हैं। गाँवों की नैसर्गिक सुंदरता देखते ही बनती है। लेकिन बस की दुर्दशा ने लेखक या उसके दोस्तों पर तो भय का प्रभाव छोड़ दिया था। इसलिए लेखक को ऐसा लग रहा था कि कभी भी कोई भी पेड़ आकर उनसे टकरा सकता है। इसलिए पेड़ लेखक को दुश्मन की भांति दिख रहे थे।
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