Bazar ka jaddu chadne ka kya arth h
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kyoki vah thik se aacha nahi kiya jata hai
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बाजा़र का जादू चढ़ने पर मन अधिक-से-अधिक चीजें खरीदना चाहता है। तब व्यक्ति को लगता है कि बाजार में बहुत कुछ है और उसके पास बहुत कम चीजें हैं। बाजार का जादू व्यक्ति के सिर चढ़कर बोलता है। वह कहता है आओ मुझे लूटी और लूटी।
बाजा़र का जादू मनुष्य को विकल बना देता है। उसके पास जितना पैसा होता है, चीजें खरीदता चला जाता है। उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या ले और क्या छोड़े। सभी कुछ लेने को जी चाहता है। बाजा़र का जादू आँख की राह काम करता है। बाजा़र का जादू उतरने पर मनुष्य को पता चलता है कि फंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। बाजा़र का जादू उतरने पर उसे अपने द्वारा खरीदी गई चीजें अनावश्यक मालूम होने लगती हैं।
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वन्देमातरम
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