बच्चों के बीच बढ़ते मानसिक तनाव पर निबंध लिखें
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हमने जीवन को दौड़भाग भरा तो बनाया ही है, इस लाइफ स्टाइल में बच्चों को भी घसीट लिया है। पढ़ाई और अन्य क्षेत्रों में प्रतियोगिता इतनी बढ़ा दी है कि अब बच्चे इसके कारण तनाव की चपेट में आने लगे हैं। अध्ययनों में सामने आया है कि बस्ते के बोझ के साथ-साथ बच्चों के दिमाग पर स्ट्रेस इतना बढ़ गया है कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में तो बाधाएं आने लगी हैं उनके व्यवहार में भी बदलाव हो रहा है। एक रिपोर्ट...
परिदृश्य
पढ़ाई के बोझ से परेशान छात्र दिल्ली से हरिद्वार पहुंच गए। पुलिसकर्मियों ने पूछताछ की तो तीनों किशोरों ने बताया कि उनका घर से भागने का कारण पढ़ाई का अत्याधिक बोझ और परीक्षा है। तीनों में से दो सातवीं और एक आठवीं में पढ़ता था।
एक अजीब घटना में...एक छात्र ने परीक्षा पत्र में आत्महत्या का नोट लिख दिया कि वह अपनी पढ़ाई के दबाव का सामना नहीं कर पा रहा था। इंटरमीडिएट में पढऩे वाली एक लडक़ी ने इस लिए ट्रेन के आगे कूदने की कोशिश की क्योंकि वो गणित में फेल हो गई थी। घर के लोगों ने उसे डांटा था। ये कुछ घटनाएं हैं, जो छात्रों में तनाव के बढ़ते स्तर को दर्शाती हैं। दरअसल शिक्षा ही मनुष्य को सभ्य बनाती है। इसलिए हमारे देश में शुरू से ही शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। प्राचीन समय में शिक्षा प्रणाली सरल थी। इसके तनावपूर्ण होने का भी कोई संकेत नही मिलता है। वर्तमान में शिक्षा को चुनौतीपूर्ण और प्रतिस्पद्धात्मिक बना दिया गया है। परिणाम को ज्यादा महत्व दिया जाता है। जिस कारण छात्रों पर अच्छा प्रदर्शन और टॉप करने के लिए दबाव रहता है। इसे ‘शैक्षणिक तनाव’ के रूप में जाना जाता है।
स्वभाव पर पड़ रहा है असर
मनोचिकित्सक नियति धवन के अनुसार शैक्षणिक दबाव छात्र के अच्छे प्रदर्शन के लिए बाधक है। प्रत्येक व्यक्ति अलग है, कुछ छात्र शैक्षणिक तनाव का अच्छी तरह से सामना कर लेते हैं। लेकिन कुछ छात्र ऐसा नहीं कर पाते, जिसका असर उनके स्वभाव पर पड़ रहा है। वे माता-पिता के साथ उग्र होने लगते हैं। ऐसे केस अब सामने आने लगे हैं। ऐसे में वो अत्यधिक या कम खाने लगते हैं या जंक फूड खाने लगते हैं। असमर्थता को लेकर उदास छात्र तनाव से ग्रसित होने के साथ ही पढ़ाई भी बीच में छोड़ देते हैं। बदतर मामलों में, तनाव से प्रभावित छात्र आत्महत्या का विचार भी मन में लाने लगते हैं। आज अभिभावक और शिक्षक दोनों ही बच्चों को लेकर बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गए हैं। स्कूल में अच्छे प्रदर्शन और पढ़ाई के तनाव के साथ-साथ घर में भी उन पर ऐसा ही दबाव रहता है। कई बार इस दबाव में बच्चे मानसिक तौर पर टूट जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार सिर्फ दिल्ली में ही प्रतिमाह चार से ज्यादा बच्चे ऐसे तनाव के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। इसमें एक बड़ी वजह स्कूल और परिवार का दबाव भी है।
भारी बस्ता भी तनाव का कारण
एसोचैम के एक सर्वे में यह भी सामने आया है कि पांच से १२ वर्ष उम्र वर्ग के बच्चों में भारी स्कूल बैग की वजह से पीठ दर्द और तनाव का खतरा ज्यादा होता है।
डिजिटल पढ़ाई
स्कूली बस्ते का बोझ और बच्चों में तनाव कम करने के लिए अब सरकार भी प्रयासरत है। इसके लिए डिजिटल पढ़ाई का कंसेप्ट दिया गया है, जिसके तहत केन्द्रीय विद्यालय स्कूलों में छात्रों को टेबलेट दिए जा रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेडकर ने एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी।
तनाव के कारण
खुद पैदा किया हुआ
माता-पिता, भाई-बहन और दोस्तों से दबाव
शिक्षकों से दबाव
परीक्षा से संबंधित
तनाव की पहचान
ध्यान केंद्रित न कर पाना
अक्सर स्कूल से कॉलेज से छुट्टी लेना
अनिद्रा, भ्रम, चिंता, डर
चिड़चिड़ापन, घबराहट
हमने जीवन को दौड़भाग भरा तो बनाया ही है, इस लाइफ स्टाइल में बच्चों को भी घसीट लिया है। पढ़ाई और अन्य क्षेत्रों में प्रतियोगिता इतनी बढ़ा दी है कि अब बच्चे इसके कारण तनाव की चपेट में आने लगे हैं। अध्ययनों में सामने आया है कि बस्ते के बोझ के साथ-साथ बच्चों के दिमाग पर स्ट्रेस इतना बढ़ गया है कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में तो बाधाएं आने लगी हैं l
पढ़ाई के बोझ से परेशान छात्र दिल्ली से हरिद्वार पहुंच गए। पुलिसकर्मियों ने पूछताछ की तो तीनों किशोरों ने बताया कि उनका घर से भागने का कारण पढ़ाई का अत्याधिक बोझ और परीक्षा है। तीनों में से दो सातवीं और एक आठवीं में पढ़ता था।