बच्चों के शिक्षा में माता पिता की भूमिका
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बच्चे का सबसे पहला विद्यालय उसका घर और सबसे पहले गुरु उसके माता-पिता होते हैं। शिशु शुरुआती अवस्था में अपने माता-पिता से ही सारी क्रियाएं सीखता है और अपना ज्ञान अर्जित करता है। माता-पिता न सिर्फ बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं बल्कि सही-गलत की पहचान कराते हुए बच्चों का स्वर्णिम भविष्य बनाने का भी काम करते हैं। बच्चे माता-पिता का मार्गदर्शन पाकर सभी कठिनाईयों पर विजय पाते हुए अपने सपने को साकार करते हैं। दरअसल माता-पिता के व्यवहार और क्रियाओं का उनके बच्चों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि घर में कुछ गलत होता है तो बच्चे गलत सीखते हैं। इसी तरह यदि घर का वातावरण सही होता है तो बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलती है। इसलिए सबसे पहले माता-पिता की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।
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वर्तमान में हमारी भारतीय शिक्षा प्रणाली हमें मुख्य रूप से रोजगार के लायक बनने के लिए शिक्षा प्रदान कर रही हैं |
परन्तु यह वास्तव में संपूर्ण शिक्षा नहीं हैं, क्योंकि यह केवल जीवन के एक विशिष्ट क्षेत्र तक ही सीमित हैं |
लेकिन हम सब यह भलीभाँति जानते हैं कि जीवन में केवल रोजगार के काबिल बनना ही पर्याप्त नहीं है वरन जीवन को कुशलता पूर्वक संचालित करने के लिए व्यावहारिक ज्ञान भी आवश्यक है |
इसीलिए इस परिदृश्य में माता पिता की भूमिका शिक्षा अर्जन में अहम हो जाती है क्योंकि हम बाल्यावस्था से ही अपने माता पिता और समाज से व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने लगते हैं, जो हमे शिक्षा व्यवस्था नहीं दे पाती हैं |
इसी कारण से शिक्षा में माता पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है |