बच्चों को उनकी कानूनी उम्र में ही सौंपा
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pagal hai tu...... yaar
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गुड़गांव के रायन इंटरनैशन स्कूल में 7 साल के प्रद्युम्न की हत्या का केस अब नए ट्रैक पर दौड़ रहा है। सीबीआई ने मामले में रायन के ही 11वीं कक्षा के स्टूडेंट को आरोपी बनाया है। हालांकि वह नाबालिग है और उसे कानूनन कई तरह के संरक्षण मिलेंगे। ये संरक्षण जेजे एक्ट के तहत दिए जाएंगे। इसमें नाबालिग (जूवेनाइल) के खिलाफ अलग से मामला चलता है और उसे जूवेनाइल होम यानी बाल सुधार गृह में रखा जाता है। ऐसे बच्चों को सुधारने के लिए जेजे एक्ट के तहत तमाम कानूनी रास्ते बताए गए हैं। आज बच्चों के इन्हीं अधिकारों को समझते हैं और जानते हैं कि उन्हें संविधान और कानून से किस तरह का संरक्षण मिला हुआ है।
18 साल से कम उम्र, तो आरोपी 'बच्चा'
कानूनी जानकार व सीन के मुताबिक, जूवेनाइल जस्टिस एक्ट में प्रावधान है कि नाबालिग को अधिकतम 3 साल तक जूवेनाइल होम (सुधार गृह) में रखा जा सकता है। सीनियर एडवोकेट रमेश गुप्ता बताते हैं कि साल 2000 में यह कानून बना। 2005 में जूवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन एक्ट में संशोधन कर कहा गया कि अगर किसी शख्स की उम्र 18 साल से कम है तो उसे बच्चा ही कहा जाएगा। उसे पुलिस रिमांड पर नहीं ले सकती। जूवेनाइल का मामला जूवेनाइल जस्टिस बोर्ड को रेफर कर दिया जाता है। ट्रायल जेजे बोर्ड के सामने चलता है।
तभी रिहाई असंभव जब मनोवैज्ञानिक तौर पर हो खतरा
वकील अजय दिग्पाल के मुताबिक, जूवेनाइल जस्टिस एक्ट-12 कहता है कि चाहे मामला जमानती हो या गैर जमानती, दोनों ही स्थिति में नाबालिग को जमानत देनी होती है। तभी जमानत नहीं दी जाती जब यह आशंका हो कि नाबालिग किसी क्रिमिनल गैंग में शामिल हो सकता है या फिर उसे मनोवैज्ञानिक तौर पर खतरा है। संगीन आरोप साबित होने पर भी जूवेनाइल को अधिकतम 3 साल ही बाल सुधार गृह में रखा जा सकता है। भविष्य में उसे सजायाफ्ता भी नहीं कहा जाता। उसकी पहचान भी छुपाई जाती है।
तब सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी चिंता
एडवोकेट अमन सरीन बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 अप्रैल 2015 को जूवेनाइल द्वारा किए जाने वाले गंभीर अपराध के मामले में चिंता जाहिए की थी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था वो उन मामलों में जहां गंभीर अपराध हुए हैं, जेजे एक्ट से संबंधित कानूनी प्रावधान को दोबारा देखे। 16 दिसंबर 2012 के निर्भया गैंगरेप और मर्डर मामले में एक जूवेनाइल भी आरोपी था घटना के बाद से ही इस बात को लेकर बहस चलती रही थी कि 16 से 18 साल के बीच के जो किशोर गंभीर अपराध में लिप्त हैं उनके खिलाफ सेशन कोर्ट में केस चलना चाहिए।
केंद्र सरकार ने कानून में किया बदलाव
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