बच्चों के ऊपर अत्याचार निबंध इन हिंदी
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yah Karya Yojana Keval Baalshram yah Kisi bhi Tarah Se social ke Shikar ho rahe bacchon ko shoshan karne walon ke changul se chudane tak hi simit nahin Rahane chahie Iske bare mein unke punarvas ki vyavastha bhi aani chahie pure Desh Mein Jis Tarah Badi sankhya mein bacche shoshan aur Atyachar ke Shikar ho rahe hain unke punarvas ka kam Aasan Nahi Hai
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दिल्ली में बीते हफ्ते एक बच्चे को बेचने के प्रयास में स्वयं उसके पिता के अलावा तीन महिलाओं को पकड़ा गया। इसके पहले दो एनजीओ संचालिकाएं भी यहां इसी आरोप में पकड़ी जा चुकी हैं। अभी तक एम्स में इलाज के अधीन चल रही कोमल का मामला भी मुख्य रूप से खरीद-फरोख्त से ही जुड़ा हुआ है। यह बच्ची अभी भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। जाहिर है, देश की राजधानी अब बच्चों का व्यापार करने वाले गिरोह का अड्डा बनती जा रही है। बच्चे यहां किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं रह गए हैं। पंजाब भी इस प्रकार के अपराध से मुक्त नहीं है। जालंधर कैंट के दकोहा क्षेत्र से एक सप्ताह के भीतर दो सगे भाई लापता हो गए और पुलिस उनका सुराग नहीं लगा सकी। जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तथा सर्वाधिक प्रगतिशील राज्य पंजाब की यह स्थिति है तो बाकी देश में हालत क्या होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारी सरकारें देश का भविष्य कहे जाने वाले बचपन को संवारने के क्रम में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। आए दिन नए-नए कानून, नई-नई योजनाओं और परियोजनाओं की घोषणाएं होती रहती हैं। घोषणाओं पर गौर करें तो ऐसा लगता है जैसे देश की सभी सरकारों की केंद्रीय चिंता का विषय ही बच्चे हैं। यह अलग बात है कि जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। आखिर ऐसा क्यों है?
दिल्ली में यह स्थिति अकेले बच्चों की ही हो, ऐसा नहीं है। सच तो यह है कि यहां जो भी कमजोर है उसकी स्थिति बेहद दयनीय है। चाहे वह स्त्री हो, या बच्चा या बुजुर्ग या फिर किसी अन्य तरह से कमजोर व्यक्ति। आए दिन होती दुष्कर्म की घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि दिल्ली में महिलाओं के साथ कैसा सुलूक होता है। अकेले रहने वाले बुजुर्गो के घरों में लूट और बाद में हत्या की घटनाएं भी होती ही रहती हैं। ऐसा तब है जबकि यहां पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां भी निरंतर सक्रिय रहती हैं। इसके बावजूद कमजोर लोगों पर अत्याचार की ये सभी घटनाएं हो रही हैं। क्या यह माना जाए कि यहां अराजक तत्वों के हौसले बहुत बढ़े हुए हैं? जिनके हाथ में ताकत है, वे जो चाहें कर सकते हैं? अगर पूरी तरह नहीं, तो भी काफी हद तक यह बात सही लगती है। इसके उदाहरण इन घटनाओं में ही नहीं, अकसर होने वाले रोडरेज में भी देखे जा सकते हैं। जो किसी भी तरह से मजबूत है, उसे मामूली बात पर भी सामने वाले पर हाथ छोड़ते देर नहीं लगती, चाहे गलती स्वयं उसकी ही क्यों न हो। जब निरंकुशता की यह स्थिति है तो फिर कानून के शासन की बात क्यों की जाती है?