Hindi, asked by rehnumaparveen23617, 4 months ago

बच्चों में पारिवारिक सहयोग की भावना उत्पन्न करना ​

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Answered by Anonymous
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भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में संबंधों को हर परिस्थिति, हर आधार पर प्राथमिकता दी जाती है। हमारी संस्कृति ऐसे अनेक उदाहरण से भरी हुई है, जो हमें संबंधों के महत्व, संबंधों की आवश्यकता एवं किस प्रकार से संबंध निभाना है का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। पिता-पुत्र के संबंध की गरिमा के वचन का पालन करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री भगवान राम का वनवास जाना हो या श्रीकृष्ण का मित्रता के संबंधों को सर्वश्रेष्ठ आयाम प्रदान करते हुए सुदामा का सहयोग करना रहा हो। बादशाह हुमायूं द्वारा रानी दुर्गावती के साथ भाई-बहन के संबंधों की रक्षा करना हो। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। व्यक्ति को अपने प्रत्येक कार्य के लिए सदैव किसी न किसी संबंध का निर्वहन करना होता है। संबंध सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक या व्यवसायिक कैसे भी हो सकते हैं। एक प्राणी होने के कारण हमारा संबंध मनुष्य मात्र के प्रति न होकर आसपास के भौगोलिक वातावरण से भी है। वन्यजीव, वन, बाग बगीचे, हमारे नदी-तालाब, झरनों आदि के प्रति जिम्मेदारी एक सक्रिय संबंधकर्ता के रूप में निभानी होती है। हमारे सामाजिक संबंधों में प्रकृति के साथ भी संबंधों का उतना ही महत्व है, जितना कि मनुष्य मात्र के साथ है। स्मार्ट फोन युग में संबंध फेसबुक, वाट्सएप मैसेज तक सिमटकर रह गए हैं। यह हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था के लिए चुनौती है। युवा पीढ़ी संबंधों को एकमात्र औपचारिकता मानने लगी है, उनके लिए संबंधों की गरिमा, उनका निर्वहन करना एक काम मात्र है। अत: हमें व्यक्तिगत रूप से अपने बच्चों को संबंधों के महत्व, उनके उचित व्यवस्थापन की शिक्षा बाल्यावस्था से ही देनी चाहिए। बालपन के शुरू से ही प्रकृति के साथ उनका लगाव उत्पन्न करना चाहिए। उन्हें जीव-जंतुओं को दाना पानी देने, पौधों की देखभाल करने, आसपास के वातावरण में गंदगी न फैलाने की शिक्षा देनी चाहिए। जिससे वे न सिर्फ अपने परिवार अपितु प्रकृति के साथ भी अपने संबंधों की व्यवस्था उसकी अहमियत व आवश्यकता को समझ सकें। एक बालक को अपने जन्म के साथ ही विभिन्न संबंध भी मिल जाते हैं। भारतीय परिपेक्ष्य में एक व्यक्ति की व्यक्तिगत कुशलता उसके संबंध निर्वाह से भी आंकी जाती है। एक व्यक्ति जिसके पास सारी भौतिक सुख-सुविधाएं हों परंतु अपनी खुशी बांटने के लिए कोई अपना नहीं है, तो ऐसी खुशी का कोई महत्व नहीं रह जाता है। अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर भी कोई 'बहुत अच्छा', 'शाबास' कहने वाला न हो उत्साही व्यक्ति भी निराश हो जाएगा। अत: हम ये कह सकते हैं कि जो भी संबंध हमें एक सामाजिक प्राणी के रूप में जन्मजात मिलते हैं, जो हम स्वयं द्वारा बनाते हैं, हमें उन सभी संबंधों का उचित प्रकार से समय-समय पर पोषित करते रहना चाहिए। जिससे कि हम जीवन के हर एक रंग को एक-दूसरे के साथ हंसते-हंसाते महसूस कर पाएं, उन्हें जीवंत रूप में जी सकें।

रोजी दीक्षित, प्रधानाध्यापिका लार्ड कृष्णा स्कूल संबंधों की समझ विकसित होना आवश्यक

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