Hindi, asked by charuacademy1975, 28 days ago

बचाकर बीच रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत ।
अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ में हम बढ़े अभीत ।।
सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता का विकास ।
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास ।।
सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह ।
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह ।।
धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद ।
हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद ।।

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Answered by crackmehkma7172
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Answer:

बचाकर बीच रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत । अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ में हम बढ़े अभीत ।। सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता का विकास । पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास ।।

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