Hindi, asked by sam2806, 9 months ago

-बचो विज्ञापन से
Anuchef lekhan

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Answered by ranyodhmour892
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डॉ. मयंक चतुर्वेदी ।। विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) की विज्ञापन नीति में पहले भारत सरकार की ओर से देश की तीन बड़ी संवाद समितियों को वरीयता दी गई थी, साथ में सभी समाचार पत्र-पत्रिकाओं से कहा गया था कि इन तीन में से किसी एक की सेवाएं लेना अनिवार्य है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 years ago

davp

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी ।।

विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) की विज्ञापन नीति में पहले भारत सरकार की ओर से देश की तीन बड़ी संवाद समितियों को वरीयता दी गई थी, साथ में सभी समाचार पत्र-पत्रिकाओं से कहा गया था कि इन तीन में से किसी एक की सेवाएं लेना अनिवार्य है। जैसे ही यह निर्देश डीएवीपी की वेबसाइट पर आए, देशभर में जैसे तमाम अखबारों ने विरोध करना शुरू कर दिया। यह विरोध बहुत हद तक इस बात के लिए भी था कि क्‍यों समाचार पत्रों के लिए सरकार की इस विज्ञापन एजेंसी ने अंक आधारित नियम निर्धारित किए हैं। इन नियमों के अनुसार प्रसार संख्या के लिए एबीसी या आरएनआई प्रमाण पत्र होने पर 25 अंक, समाचार एजेंसी की सेवा पर 15 अंक, भविष्‍य निधि कार्यालय में सभी कर्मचारियों का पंजीयन होने पर 20 अंक, प्रेस कॉन्‍सिल की वार्ष‍िक सदस्‍यता लेने के बाद 10 अंक, स्‍वयं की प्रेस होने पर 10 अंक और समाचार पत्रों के पृष्‍ठों की संख्या के आधार पर अधिकतम 20 से लेकर निम्‍नतम 12 अंक तक दिए जाएंगे।

इस नई विज्ञापन नीति के आने के बाद से जैसे ज्‍यादातर अखबारों को जो अब तक स्‍वयं नियमों की अनदेखी करते आ रहे थे, लगा कि सरकार ने उन पर सेंसरशिप लागू कर दी है। इन छोटे-मध्यम श्रेणी के अधिकतम अखबारों के साथ कुछ एजेंसियों को भी पेट में दर्द हुआ, जिन्‍हें अपने लिए इस नीति में लाभ नहीं दिख रहा था। बाकायदा विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। एक क्षेत्रीय समाचार एजेंसी ने तो इसमें सभी हदें पार कर दीं। वह अपने खर्चे पर छोटे-मंझोले अखबार मालिकों को दिल्‍ली ले गई और अपनी ओर से कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन करवाया।

यहां प्रश्‍न यह है कि सरकार को इस नीति को लाने की जरूरत क्‍यों आ पड़ी? क्‍या सरकार को यह नहीं पता था कि अखबारों से उसकी सीधेतौर पर ठन जाएगी। यह तय था कि जिस मोदी सरकार के बारे में कल तक ये अखबार गुणगान करने में पीछे नहीं थे, देश में इस नई विज्ञापन नीति के लागू होते ही समाचार पत्र सीधे सरकार के विरोध में खड़े हो सकते हैं। वास्‍तव में यदि इन सभी का उत्‍तर कुछ होगा तो वह हां में ही होगा, क्‍योंकि सरकार, सरकार होती है, उसके संसाधन अपार हैं और उसे ज्ञान देने वालों की भी कोई कमी नहीं होती, इसके बाद यह जानकर कि आने वाले दिनों में नई विज्ञापन नीति के लागू होते ही सबसे पहले सरकार का विरोध होगा, यह नीति डीएवीपी ने लागू की।

देखा जाए तो जिन लोगों को ये नहीं समझ आ रहा है कि क्‍यों सरकार ने आ बैल मुझे मार वाली कहावत को अपनी इस नीति के कारण चरितार्थ किया, तो उन्‍हें ये समझ लेना चाहिए कि सरकार इस रास्‍ते पर चलकर देश के उन तमाम कर्मचारियों का भला करना चाहती थी, जो किसी न किसी अखबार के दफ्तर में वर्षों से काम तो कर रहे हैं लेकिन उनका पीएफ नहीं कटता। जीवन के उत्‍तरार्ध में जीवन यापन के लिए कहीं कोई भविष्‍य नि‍धि सुरक्षित नहीं है। वस्‍तुत: सरकार इस नियम के माध्‍यम से देश के ऐसे कई लाख कर्मचारियों का भविष्‍य सुरक्षित करना चाह रही थी। इसी प्रकार समाचार एजेंसियों की अनिवार्यता को लेकर कहा जा सकता है।

Answered by shrutisharma4567
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Plz mark it as BRAINLIEST?

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