Hindi, asked by navyasingh1424, 10 months ago

बचपन की कोई घटना का संक्षिप्त में वर्णन करे​

Answers

Answered by geetkarmakar775
1

मैं एक भरे-पूरे संयुक्त परिवार में अपने माता-पिता की नौवीं संतान थी. सबसे बड़ी दो बहनें फिर छह भाई और फिर मैं. सबसे छोटे भाई और मुझमें छह साल का अंतर था और इसलिए मैं सबकी लाडली थी. खासतौर पर पिताजी की, उन्हें हम दादा कहते थे. दादा की गोद में बैठना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार था. मैं घर का सबसे छोटा बच्चा थी सो मेरे लिए इसके अपने फायदे और नुकसान थे. एक तरफ जहां मुझे कोई डांटता-फटकारता नहीं था वहीं दूसरी तरफ मेरे साथ खेलने और शैतानी करने वाला भी कोई नहीं था. छोटी होने और अकेली पड़ जाने के कारण मेरी शरारतों के कोटे में बहुत कम शरारतें हैं. यह कह सकते हैं कि घर के बड़ों को देख-देखकर मैं बचपन में ही अपनी उमर से बड़ी होने की भाव-भंगिमा में रहती थी इसलिए बेतरहआज जिस उम्र में हूं तो नजर धुंधलाने के साथ-साथ अब तो उस दौर की यादें भी धुंधली पड़ गई हैं. बचपन की जो आखिरी याद अब भी मुझे है वो सन 1960-61 की बात होगी. तब मेरी उम्र 7-8 साल की रही होगी. मेरी बहनें मुझसे बहुत बड़ी थीं. सगे भाइयों के अलावा दो चचेरे भाई भी साथ में रहते थे.चाची जल्दी गुजर गई थीं तो उनका लालन पालन मेरी मां ने ही किया था. उम्र में वे भी मेरे भाइयों के बराबरी के ही थे, यानी मुझ से काफी बड़े थे. दादा के बाद मैं सबसे ज्यादा अपने भाइयों की लाडली थी. उनकी राजनीतिक चर्चाएं सुनते और शतरंज की चालें (इस दौरान उनकी हरकतें-बातें) देखते-देखते मेरे दिन बीता करते थे. भाइयों के साथ उठने-बैठने के कारण मेरा व्यवहार, चलना फिरना, बोलने का लहजा, सब कुछ लड़कों जैसा होने लगा था. कह सकते हैं कि मैं फ्रॉक पहनने वाला लड़का थी. शरारतें करने के मौके ज्यादा आए नहीमैं देखती रहती थी कि मां, बड़ी भाभी और दोनों बहनें घर के कामकाज में जुटी रहती थीं. इतना ही नहीं वे हर समय दादा और भाइयों की खिदमत में भी हाजिर रहतीं. आज से आधी सदी पहले तब की परम्पराओं के मुताबिक ही भाइयों का पुरुषोचित व्यवहार हुआ करता था. ऐसा तब भी होता था जब भाई बहनों से छोटे थे पर वे बहनों और भाभियों पर हुकुम ही चलाते थे. कहते हैं न कि बच्चे अनुसरण बहुत जल्दी करते हैं. भाइयों के साथ रहते मैं भी कुछ हरकतें सीख गई थीं, बस आयु के हिसाब से उनका अनुपात कम था.

बाजार में मुझे हमारे एक परिचित चाचाजी ने देख लिया. मैं भी गुस्से में निकल तो आई थी, पर बाद में घबराहट होने लगी. चाचाजी को देखकर रुलाई फूट पड़ी. वे मुझे अपने घर ले गए. चाचाजी समझ गए थे कि मैं डरी हुई हूं और भूखी भी हूं. पहले उन्होंने कुछ खिलाया फिर सारा माजरा सुना और आखिर में अपनी तरफ से कुछ बातें समझाईं. घर में बिना किसी को बताए कहीं नहीं जाना चाहिए, टाइप की उनकी बातें तो मुझे समझ में आ गईं लेकिन यह समझ नहीं आ रहा था कि अब घर जाकर घरवालों का सामना कैसे करूंगी? मैं सोच रही थी कि सबने मुझे यहां-वहां ढूंढा होगा और न पाकर कितने परेशान हुए होंगे. मां का दिखाया चिमटा भी याद आ रहा था. मैं घर पर घट सकने वाले दृश्यों की अलग-अलग कल्पनाओं में डूबी हुई थी और यह सब सोचने के साथ मेरी घबराहट बढ़ती जा रही थी.बाजार में मुझे हमारे एक परिचित चाचाजी ने देख लिया. मैं भी गुस्से में निकल तो आई थी, पर बाद में घबराहट होने लगी. चाचाजी को देखकर रुलाई फूट पड़ी. वे मुझे अपने घर ले गए. चाचाजी समझ गए थे कि मैं डरी हुई हूं और भूखी भी हूं. पहले उन्होंने कुछ खिलाया फिर सारा माजरा सुना और आखिर में अपनी तरफ से कुछ बातें समझाईं. घर में बिना किसी को बताए कहीं नहीं जाना चाहिए, टाइप की उनकी बातें तो मुझे समझ में आ गईं लेकिन यह समझ नहीं आ रहा था कि अब घर जाकर घरवालों का सामना कैसे करूंगी? मैं सोच रही थी कि सबने मुझे यहां-वहां ढूंढा होगा और न पाकर कितने परेशान हुए होंगे. मां का दिखाया चिमटा भी याद आ रहा था. मैं घर पर घट सकने वाले दृश्यों की अलग-अलग कल्पनाओं में डूबी हुई थी और यह सब सोचने के साथ मेरी घबराहट बढ़ती जा रही थी.

Answered by khushboo8267
2

Answer:

Here is yur answer

Explanation:

मैं घर में दो भाइयों की छोटी बहन थी. मेरा जन्म तो दिल्ली में हुआ पर परवरिश गांव वाली मिली थी क्योंकि मम्मी-पापा दोनों ग्रामीण पृष्ठभूमि से थे. इसलिए हमें शहरी बच्चों की तरह टिप-टॉप बनकर घूमने और पार्क में जाकर खेलने तक सीमित बचपन नहीं मिला. मैं भाइयों के साथ मिट्टी में खेली और लोट-पोटकर खेली. इस तरह खेलने पर मम्मी-पापा ने कभी रोक-टोक नहीं की. लेकिन मिट्टी में लोटते हुए भी मेरा दिमाग उड़न-तश्तरी की तरह जाने किस आसमान के चक्कर लगाता रहता, हर समय मैं कुछ न कुछ करने की फिराक में रहती थी. मुझे बचपन से ही एडवेंचर का बहुत शौक था, अब भी जब कभी सटक जाती हूं तो कभी पहाड़ चढ़ने शिमला निकल पड़ती हूं तो कभी नाव चलाना सीखने के लिए बनारस के किसी घाट पहुंच जाती हूं. घर वालों को भी मेरे इस शौक का अंदाजा पहले ही लग गया था क्योंकि बचपन में मैंने इस तरह की हरकतों के नैनो वर्जन उन्हें दिखा दिए थे.

Hope it helps yu

Similar questions