बचपन की शरारतो को याद करते हुए दो मित्रो के बीच संवाद
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एक दिन दो करीबी दोस्त रमन और रोहन एक पुराने बरगद के पेड़ के पास खड़े थे यह एक बहुत ही सुखद मौसम था और अचानक उनके बचपन में एक फ्लैशबैक आया वे आपस में बात करने लगे
रमन - दोस्त रोहन क्या आपको याद है कि हम इस पेड़ के नीचे एक साथ बहुत समय बिताते थे
रोहन - हाँ रमन मुझे याद है कितने अच्छे दिन थे वो
रमन- न तो हमें किसी की चिंता थी लेकिन अब सब कुछ बदल गया है
रोहन - आज के बच्चे बिना फोन के दुनिया की कल्पना नहीं कर सकते और हम पेड़ों और दोस्तों के बिना
रोहन - हमने इस पेड़ के पास लुकाछिपी खेलने में बहुत मज़ा लिया था मुझे याद है जब हमारी मां हमें डांटती थी तो हम यहां आते थे और आकाश को देखते थे तब हम मुस्कुराते थे
रमन - लेकिन अब हम अपने व्यस्त कार्यक्रम में दोस्तों के साथ बिताने के लिए समय नहीं निकालते
रोहन - दोस्त क्या हम उस समय कभी सोच सकते हैं कि हमारा जीवन इतना बदल जाएगा
रमन - हाँ दोस्त लेकिन फिर भी जब हम अपने बचपन को देखते हैं तो हमें कई यादों का फ्लैशबैक होता है वो यादें वाकई याद रखने लायक हैं
रोहन - काश, हम अपने बचपन के दिनों में वापस लौट पाते
वे दोनों अपने बचपन को पूरी तरह से याद कर रहे थे और समय में वापस जाना चाहते थे लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि समय और समुद्र की लहरें कभी किसी का इंतजार नहीं करती हैं वे निराश थे इस बातचीत से
हमें एक सीख मिलती है कि हमारा समय और दोस्त कितने महत्वपूर्ण हैं हमें हमेशा समय का सदुपयोग करना चाहिए और अपने परिवार और दोस्तों के लिए भी समय निकालने की कोशिश करनी चाहिए अन्यथा एक दिन हम पछताएंगे
Answer:
बचपन और शरारतें। उफ्फ़!
मेरा बचपन तो शरारतों का पिटारा है और पिटाई की कहानियों से पटा पड़ा है। शरारतों का आलम यह कि मेरी शरारतों के चलते पौने दो वर्ष छोटा भाई भी गेहूं के साथ घुन की तरह पिस जाता था।
शरारती तो मैं बहुत बचपन से ही हूँ। मुझे खुद तो याद नही परंतु मेरी माँ बताती हैं कि मैं एक बार अपने दूधमुंहे भाई को लहसुन खिला रहा था। बाबू लसुन खा… मेरी माँ सोच रही थीं कि मैं अपने भाई के साथ खेल रहा हूँ। किस्मत से उन्होंने आ कर देख लिया और मैं अपने भाई के मुँह में 4–5 लहसुन की कलियाँ भरे बैठा था, और ठूसने की कोशिश में।
उस समय के और किस्सों में एक किस्सा यह भी था कि बहुत देर तक अगर मैं माँ को नज़र नही आया या मेरी आवाज सुनाई नही दी मतलब मैं पक्का कुछ कांड कर रहा हूँ। आमतौर पर किचन में मसाले के डिब्बे में मसाले मिलाते हुए पाया जाता था। क्या धनिया क्या गरम मसाला और क्या हल्दी और नमक। जब सब कुछ सब्जी में डालना ही है तो क्यों न सब पहले से ही मिला कर रखा जाए।
फिर मैं थोड़ा बड़ा हुआ। कारनामे कम न हुए अपितु बढ़ गए। पिटाइयों का दौर भी। आपने 3 idiots में रेंचो का किरदार देखा होगा। कभी कभी यह लगता है कि रेंचो का किरदार मेरे बचपन पर आधारित है क्योंकि मेरा बचपन 3 idiots से बहुत पहले बीत गया। घर का सब सामान खोलने के लिए आतुर रहता था। कभी दीवार घड़ी खोल दी, कभी टेप रिकॉर्डर, तो कभी सिलाई मशीन। टीवी खोलने के लिए हाथ मे बहुत ज़्यादा खुजली हुआ करती थी परंतु वह रोज़ चलता था तो हिम्मत नही कर पाता था। समान खोल तो लेता था परंतु सब बंद न कर पाता था। फिर कभी किसी ने वह सामान देख लिया तो बस। लात जूतों की बरसात हो जाती थी।
मेरे ज़्यादातर कारनामे दोपहर में जब मम्मी सो जाती थी तब हुआ करते थे। वैसे तो स्कूल से लौटने के बाद वह हम दोनों को खाना वगेरह खिला कर ले कर 1–2 घंटे सो जाती थीं। माँ और भाई सो जाते थे पर मैं दोनों के सोने का इंतज़ार करता और दोनों के सोने के बाद निकल पड़ता कारनामे करने।
एक बार की बात है मैंने घर की एकमात्र दीवार घड़ी खोल दी दोपहर के समय। जब मम्मी उठीं और घड़ी बंद पाई तो उन्हें लगा बैटरी खत्म हो गयी है। शाम को पिताजी घर आये तो उन्हें बैटरी चेंज करने को कहा। पिताजी बैटरी चेंज करने चले तो पता चला कि घड़ी की मशीन खोले बैठे हैं उनके साहबज़ादे। बस फिर क्या था। दे देना दन, दे देना दन। सुताई की प्रक्रिया चालू हुई। सूते जाने के बाद रात का खाना खाया और सो गया। उस दिन मैंने निश्चय किया कि आज के बाद यह सब काम कभी न करूँगा।
परंतु कुत्ते की पूछ कभी सीधी हुई है भला?
अगली बार पकड़ा गया मैंने प्यार किया कि ऑडियो कैसेट में रिकॉर्डिंग किये हुए। उस समय गाना सुनने का एक माध्यम हुआ करता था रेडियो दूसरा माध्यम दूरदर्शन पर रंगोली और चित्रहार और तीसरा माध्यम ऑडियो कैसेट। अब घर मे मौज़ूद 4–5 फ़िल्मी गानों की कैसेट में से एक मे आपके दो बच्चे आपके एक पसंदीदा गाने पर - बाबू क… बू…त… र… कबूतर बोल रिकॉर्ड कर दें तो आपका गुस्सा सातवें आसमान पर होगा ही। बस फिर क्या था शाम को फिर दोनों भाई सूते गए। आलम यह कि वह चालाक हो गया था। पिटाई होगी तो दो दोनों भाई तितरबितर हो जाते थे। मेरा भाई तो चारपाई के नीचे या ऊपर कहीं न कहीं छुप जाता था पर मम्मी के बुलाने पर बाहर नही आता था जब तक मम्मी का गुस्सा शांत नही हो जाता या फिर मम्मी का गुस्सा शांत करने के लिए मैं नही मिल जाता पीटने को। आमतौर पर मैं मम्मी के बुलाने पर आ जाता था पर वह नही। इसीलिए मैं ज़्यादा सूता जाता था।
कुछ समय बाद अब बाबू ने कान पकड़ लिए की अब वह कबूतर नही बोलेगा। भाई माँ का मुख़बिर बन चुका था। मैं जहां जो शरारत करता भाई घर आ पर माँ से मेरी चुगली कर देता। और फिर मेरी सुताई होते देख आनंद लेता था। लाख सुताइयों बाद भी कुत्ते की दुम कुत्ते की ही रही - सीधी न हुई।
घर मे भले ही लाख शैतानियां कर लूँ स्कूल में टीचर कभी यह शिकायत न कर पाए कि यह लड़का बहुत शरारत करता है। स्कूल जा कर तो मेरा अलग ही रूप नज़र आता था। पढ़ने में कभी अव्वल न आया परंतु किसी भी शिक्षक को शरारतों के लिए शिकायत का मौका न दिया मैंने।
पेड़ पौधों के लिए हमेशा से ही एक अलग किस्म की जगह रही है मेरे हृदय में। जोधपुर, राजस्थान की बात है। पापा एक पौधा ले कर आये। घर के सामने बहुत बड़ी खाली जगह थी वहाँ यह पौधा लगाया गया। हरे पत्ते देख कर मैं बहुत खुश होता था। रोज़ नियम से पौधे को पानी दिया जाता। फिर किसी दिन गाय आ कर पत्ते खा गयी। मैं बहुत दुखी हुआ। उस दिन निर्णय किया कि पौधे को गाय से बचाने के लिए कुछ करना चाहिए। शाम को दौड़ा दौड़ा गया, पास की झाड़ियों से कीकर की कंटीली टहनियाँ ला कर पौधे के इर्द गिर्द घेरा बना दिया जिससे गाय न पहुच पाए। परंतु गाय तो गाय होती है। उसकी लंबी गर्दन और एक लंबी जीभ भी होती है। कुछ पत्ते हुए और गाय फिर खा गयी। और इंतज़ाम किया गया। अब गाय से छुटकारा मिल गया। परंतु आस-पड़ोस के बच्चों का क्या? वह नासपीटे तो गाय से भी ज़्यादा शरारती। कुछ पत्ते होते तो वह आ कर टहनियाँ तोड़ देते। अब मेरे शरारती दिमाग ने एक नई युक्ति लगाने की सोची। दोपहर के समय मैं घर से निकल जाता और अपने एक्सपेरिमेंट को अंजाम देता। गढ्ढा खोद कर उसमें कांटे भर कर ऊपर से इस तरह ढक दो की किसी को पता न चले कि नीचे ऐसा कुछ है। फिर पौधे को कोई नुकसान पहुचाने के उद्देश्य से आएगा तो गढ्ढे में पैर पड़ेगा और उसके पैर में कांटे चुभ जाएंगे। मेरा मकसद किसी को चोट पहुचाना न था अपितु अपने पौधे से दूर रखना था। पर मेरा प्रोजेस्ट कभी लागू न हो पाया। एक बार जब मैं मेरठ में था ऐसे ही पौधे को नुकसान पहुचाने वाले बच्चों से परेशान हो कर मैंने विधुतीय बाड़ लगाने की युक्ति लगाई थी। फिर यह सोच कर नही लगाया कि किसी को बहुत अधिक हानि हो सकती थी 220 वोल्ट बिजली का करंट लगने से।